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सत्य में, असत्य अलग कर दिया जाता है। ऋतम्भरा में संपूर्णता ही स्वीकृत होती है। और संपूर्ण की घटना इतनी समस्वरीय है कि विष भी अपनी भूमिका निभाता है। केवल जीवन ही नहीं, बल्कि मृत्यु भी, हर चीज नये प्रकाश में देखी जाती है। पीड़ा भी, दुख भी, स्वयं में एक नयी गुणवत्ता धारण कर लेता है। असुंदर भी हो जाता है सुंदर क्योंकि ऋतम्भरा के अवतरण की घड़ी में, तुम्हें पहली बार समझ में आता है कि विपरीत का अस्तित्व क्यों होता है। और विपरीतताए फिर विपरीतताए नहीं रहतीं; वे सब पूरक बन चुकी होती हैं; वे मदद पहुंचाती हैं एक दूसरे को। अब तुम्हें कोई शिकायत न रही, अस्तित्व के विरुद्ध कोई शिकायत नहीं। अब तुम्हें समझ आ जाती है कि क्यों वे चीजें वैसी हैं जैसे कि वे हैं; मृत्यु का अस्तित्व क्यों है। अब तुम जान लेते हो कि जीवन अस्तित्व नहीं रख सकता बिना मृत्यु के। और मृत्यु के बिना जीवन होगा क्या? जीवन तो बस असह्य हो जाएगा बिना मृत्यु के; जीवन तो असुंदर ही हो जाएगा बिना मृत्यु के; जरा सोचकर देखना।
एक कथा है सिकंदर महान के विषय में। वह किसी ऐसी चीज की तलाश में था जो उसे अमर बना सके। हर कोई होता है किसी ऐसी ही चीज की तलाश में, और जब सिकंदर ने खोजा, तो पाया उसने। वह बहुत शक्तिशाली व्यक्ति था। वह खोजता गया और खोजता गया, और एक बार वह पहुंच गया उस गुफा में जहां किसी फकीर ने उड़ने. बताया कि वहां एक नदी की-धारा है, और कि यदि वह उस गुफा का पानी पी ले, तो वह अमर हो जाएगा। सिकंदर जरूर मढ़ रहा होगा। सारे सिकंदर मूढ़ होते है। अन्यथा उसने पछ लिया होता उस फकीर से कि उसने भी उस धारा का पानी पीया है या नहीं पूछा; इतनी जल्दी में था वह! और कौन जाने? -वह शायद गुफा तक पहुंच ही न पाया हो मरने के पहले, अत: वह धावा बोलता दौड़ पड़ा। वह पहुंच गया गुफा तक।
वह पहुंचा अंदर, वह बहुत प्रसन्न था। वहां स्फटिक की भांति साफ जल था। उसने कभी न देखा था ऐसा जल। वह जल पीने को ही था, तब गुफा में बैठा हुआ एक कौआ अचानक बोला, 'ठहरो! ऐसा मत करना। मैंने किया ऐसा और मैं भुगत रहा हूं।' सिकंदर ने देखा कौए की तरफ और बोला, 'क्या कह रहे हो तुम? तुमने पीया और दुख तकलीफ क्या है?' वह कहने लगा, 'अब मैं मर नहीं सकता और मैं मरना चाहता हूं। हर चीज समाप्त हो गई। मैंने जान लिया हर चीज को जो कि यह जीवन दे सकता है। मैंने जान लिया है प्रेम को और मैं आगे बढ़ गया हूं उससे। मैंने जान लिया है सफलता को; मैं राजा था कौओं का। मैं थक कर तंग आ चुका और जो-जो कुछ जाना जा सकता है जान लिया है मैंने। और हर वह व्यक्ति जिसे मैं जानता था, मर चुका है। वे लौट गए, शांति पा गए, और मैं शात हो नहीं सकता। मैंने सारी कोशिशें कर ली हैं आत्महत्या करने की, पर हर चीज असफल हो जाती है।
'मैं मर नहीं सकता क्योंकि मैंने इस दोषित गुफा से जल पी लिया है। बेहतर है कि कोई न जाने इसके बारे में। इससे पहले कि तुम पीयो, तुम जरा ध्यान कर लेना मेरी स्थिति पर और फिर तुम पी सकते हो।' ऐसा कहा जाता है कि सिकंदर ने पहली बार सोचा इसके बारे में और उस गुफा की उस जल धारा से पानी पीए बिना ही चला आया।