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कृष्णमूर्ति जैसा आदमी देख सकता है। कोई अड़चन नहीं, कोई बाधा नहीं, और वह देख लेता है हर
चीज को जो – जो घट रही है उसके आसपास । लेकिन एक बुद्ध - पुरुष कुछ कर नहीं सकता ?इ है। उसे वैसा ही होना होता है जैसा कि वह होता है, मुक्त और स्वाभाविक कुछ करना ले आता है तनाव और करना तुम्हें बना देता है अस्वाभाविक तब तुम धारा के विपरीत बह रहे होते हो। कृष्णमूर्ति जानते हैं कि क्या घट रहा है, किंतु वे कुछ कर नहीं सकते। उन्हें घटने देना होता है इसे। इसी भांति समष्टि इसे चाहती है। कुछ नहीं किया जा सकता इस विषय में। कर्ता सदा रहता है अज्ञान में जब कोई जाग जाता है तो कर्ता कभी नहीं मिलता। जब कोई जाय जाता है तो जो कुछ भी हो अवस्था, वह स्वीकार करता है उसे ।
तो मत सोच लेना कि कृष्णमूर्ति जानते नहीं हैं। वे संपूर्णतया जानते हैं, तो भी इसी प्रकार घटी है बात और भीतर कोई नहीं है यह निर्णय देने को कि ऐसा इस तरह घटना चाहिए या किसी दूसरी तरह कुछ नहीं किया जा सकता है। गुलाब का फूल तो गुलाब का फूल ही होता है, और आम का वृक्ष होता है आम का वृक्ष । आम्रवृक्ष गुलाबों को नहीं ला सकता, गुलाब का पौधा आमों को नहीं सकता। ऐसा ही होता है - एक समग्र स्वीकार ।
और जब मैं कहता हूं समय स्वीकार तो ऐसा तुम्हें मात्र समझाने को ही अन्यथा एक संबोधि को उपलब्ध हुई चेतना में स्वीकार नहीं होता क्योंकि वहां कोई अस्वीकार नहीं होता। इसीलिए मैं इसे कहता हूं समग्र। यह परम समर्पण ही होता है समग्रता के प्रति। हर चीज ठीक होती है। मैं तुम्हें मदद दे सकता हूं या कि नहीं, यह मेरे निर्णय की बात नहीं। समग्रता निर्णय करती है, और समग्रता मेरा उपयोग करती है। यह उस पर है। यदि यह ठीक है कि लोगों की मदद नहीं की जानी चाहिए, तो समग्रता मुझे मदद नहीं करने देगी लोगों की, लेकिन मैं कहीं नहीं होता इसमें यह होती है संबोधि की अवस्था । तुम नहीं समझ सकते इसे, क्योंकि तुम सदा कर्ता के ढंग से सोचते हो। बुद्ध - पुरुष वस्तुतः अस्तित्व ही नहीं रखता। वह वहां होता ही नहीं एक विशाल शून्यता होती, इसीलिए जो कुछ भी घटता है, घटता है; जो कुछ नहीं घटता नहीं घटता है।
और तुम पूछते हो मुझसे, और आप कहते हैं कि आप सभी प्रकार के खोजियों की मदद कर पाते है किंतु आप यह भी कहते हैं कि आप प्रयोजनवश विरोधात्मक है, जिससे कि कुछ लोग दूर चले जायेंगे। यदि आप सभी की मदद कर पाते हैं, तो क्यों कुछ लोगों का दूर जाना आवश्यक है?'
हां, ऐसा ही है यह। सभी को मदद मिल सकती है मेरे द्वारा। जब मैं कहता हूं कि सभी को मदद मिल सकती है मेरे द्वारा, तो मेरा मतलब यह नहीं होता कि सभी को मदद मिलनी चाहिए, क्योंकि ऐसा केवल मेरी ओर से ही संबंधित नहीं है। यह निर्भर करता है उस व्यक्ति पर भी जिसे कि मदद मिलनी होती है। ऐसा आधा-आधा होता है। एक नदी बहती है और मैं पानी पी सकता हूं उसका, तो