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वे समाधियां जो किसी विषय पर ध्यान करने से फलित होती हैं सबीज समाधियां होती हैं और आवागमन के चक्र से मुक्त नहीं करतीं।
सारी समस्या यही होती है कि दूसरे से, विषय से, कैसे मुका हों? विषय ही होता है सारा संसार। तुम आओगे फिर-फिर यदि विषय वहां होता है तो, क्योंकि विषय के साथ ही विदयमान होती है आकांक्षा, विषय के साथ ही जीवन बना रहता है विचार का, विषय के साथ ही अस्तित्व होता है अहंकार का, विषय के साथ ही अस्तित्व रखते हो 'तुम'। यदि विषय गिर जाता है, तुम गिर पड़ोगे अचानक ही क्योंकि विषय और व्यक्ति एक साथ ही अस्तित्व रखते हैं। वे एक दूसरे के हिस्से हैं; एक का अस्तित्व नहीं बना रह सकता है। ऐसा सिक्के की भांति ही है। चित्त और पट एक साथ अस्तित्व रखते हैं। तुम एक को बचा, दूसरे को नहीं फेंक सकते। तुम चित्त को नहीं बचा सकते और पट को नहीं फेंक सकते-वे दोनों इकट्ठे ही हैं। या तो तुम उन दोनों को रख लो और या फिर दोनों को ही फेंक दो। यदि तम एक को फेंकते हो तो दसरा फिंक जाता है। व्यक्ति और विषय साथ-साथ होते हैं, वे एक होते हैं एक ही चीज के पहलू होते हैं। जब विषय गिर जाता है, तुरंत व्यक्ति-परकता का संपूर्ण घर ही ढह जाता है। तब तुम फिर वही पुराने न रहे। तब तुम पार चले गए, और केवल 'पार' ही जीवन-मृत्यु के पार है।
तुम्हें मरना होगा, तम्हें होना होगा पुनर्जीवित। जब मर रहे होते हो, तो वृक्ष की भांति तुम फिर से बीज में एकत्रित कर लेते हो अपनी आकांक्षाओं, अभीप्साओं को। तुम नहीं जाते दूसरे जन्म में, बीज उड़ जाता है और जा पहुंचता है दूसरे जन्म में। वह सब जिसे तुमने जीया होता है, चाहा होता हैतुम्हारी कुंठाएं, तुम्हारी विफलताएं, तुम्हारी सफलताएं, तुम्हारे प्रेम, घृणा-जब तुम मर रहे होते हो तो सारी ऊर्जा इकट्ठी हो जाती है एक बीज में। वह बीज होता है ऊर्जा का। वह बीज कूद पड़ता है तुम में से और सरक जाता है किसी गर्भ में। फिर वह बीज पुनर्निर्मित कर देता है तुम्हें, वृक्ष के बीज की भांति ही। जब वह वृक्ष मरने वाला होता है, वह सुरक्षित रखता है स्वयं को बीज में। बीज के द्वारा
डटा रहता है; बीज के द्वारा 'तुम' डटे रहते हो, अटके रहते हो। इसीलिए पतंजलि इसे कहते हैं, 'सबीज' समाधि। यदि विषय वहां होता है, तो तुम्हें फिर-फिर जन्म लेना होगा, तुम्हें गुजरना पड़ेगा उसी दुख में से, उसी नरक में से जो है जीवन, जब तक कि तुम बीज-विहीन ही न हो जाओ।
और बीज-विहीनता होती क्या है? यदि विषय वहां नहीं होता, तो बीज नहीं होता। तब तुम्हारे पिछले सारे कर्म बिलकुल तिरोहित हो- जाते हैं, क्योंकि वस्तुत: तुमने तो कभी कुछ किया ही नहीं। हर चीज होती रही है मन के द्वारा-मगर तुम तादात्म्य बना लेते हो, तुम सोचते हो, तुम्ही मन हो। हर चीज की गयी है शरीर के द्वारा–लेकिन तुम बना लेते हो तादात्म्य, तुम सोच लेते हो कि तुम शरीर हो।