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पहले तो विषय-वस्तुओं के साथ काम करना शुरू करो। इसीलिए पतंजलि दूसरी समाधियों की बात करते हैं, इससे पहले कि वे बात करें निर्विचार समाधि की समाधि जो है बीज रहित। विषयों के साथ आरंभ करो और बढ़ो ज्यादा सूक्ष्म विषयों की ओर।
उदाहरण के लिए एक पक्षी गाता है एक वृक्ष पर : सजग हो जाओ, जैसे कि उसी पल में और पक्षी के उसी गान में अस्तित्व हो तुम्हारा-समष्टि अस्तित्व नहीं रखती। अपनी समग्र सत्ता को केंद्रित करो पक्षी के गान की तरफ और तुम जान जाओगे अंतर को। यातायात के शोर का कोई अस्तित्व न रहा या फिर वह अस्तित्व रखता है परिधि पर ही-दूर, कहीं बहुत दूर। वह छोटा-सा पक्षी और उसका गान तुम्हारे अस्तित्व को भर देता है संपूर्णतया केवल तुम्हारा और पक्षी का अस्तित्व बना रहता है। और फिर जब गान समाप्त हो जाता है, तो सुनो गाने की अनुपस्थिति को। तब विषय सूक्ष्म बन जाता है।
सदा स्मरण रख लेना कि जब गान समाप्त होता है तो वह वातावरण में एक निश्चित गुणवत्ता छोड़ जाता है-वह अनुपस्थिति। वातावरण अब वही नहीं रहा। वातावरण संपूर्णतया बदल गया क्योंकि गाने का अस्तित्व था और फिर गान तिरोहित हो गया-अब है गाने की अनुपस्थिति। ध्यान देना इस पर सारा अस्तित्व भरा हुआ है गाने की अनुपस्थिति से। और यह ज्यादा सुंदर है किसी भी गाने से क्योंकि यह गान है मौन का। एक गान उपयोग करता है ध्वनि का और जब ध्वनि तिरोहित हो जाती है तो अनुपस्थिति उपयोग करती है मौन का। पक्षी गा चुका होता है तो उसके बाद मौन ज्यादा गहन होता है। यदि तुम देख सकते हो इसे, यदि तुम सचेत रह सकते हो, तो अब तुम ध्यान कर रहे होते हो सूक्ष्म विषय पर, बहुत ही सूक्ष्म विषय पर।
एक व्यक्ति चल रहा होता है, बहुत सुंदर व्यक्ति-ध्यान देना उस व्यक्ति पर। और जब वह चला जाता है, तो ध्यान देना अनुपस्थिति पर। वह पीछे छोड़ गया है कोई चीज। उसकी ऊर्जा ने बदल दिया होता है कमरे को; अब वह वही कमरा नहीं रहा।
जब बुद्ध मृत्युशय्या पर थे, आनंद जो कि चीख रहा था और रो रहा था, पूछने लगा उनसे, अब हमारा क्या होगा? आप यहां थे और हम उपलब्ध न हो सके। अब आप यहां नहीं रहेंगे। क्या करेंगे हम?' कहा जाता है कि बुद्ध बोले, 'अब मेरी अनुपस्थिति से प्रेम करना, मेरी अनुपस्थिति के प्रति एकाग्र रहना।
पांच सौ वर्ष तक बुद्ध की कोई प्रतिमा नहीं बनाई गयी ताकि अनुपस्थिति की अनुभूति पाई जा सके। प्रतिमाओं के स्थान पर केवल बोधिवृक्ष चित्रित किया गया। मंदिरों का अस्तित्व रहा, लेकिन बुद्ध की प्रतिमा के साथ नहीं। मात्र बोधिवृक्ष होता था, पत्थर का बोधिवृक्ष जिसके नीचे अनुपस्थित बुद्ध होते। लोग जाते बैठने को और ध्यान देते वृक्ष पर और वृक्ष के नीचे बुद्ध की अनुपस्थिति पर ध्यान करने की कोशिश करते। बहत से उपलब्ध हो गए बहत गहन मौन को और ध्यान को। फिर