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घर ले आए उसे और बोले, 'क्या कर रहे हो तुम? यदि तुम्हें कुछ मिला भी है तो जरा उचित वस्त्रों में जाओ, वरना तो तुम मुसीबत में पड़ जाओगे।'
मन के दो संवेगमय क्षणों के बीच सदा एक अंतराल होता है अ-मन का। दो विचारों के बीच एक अंतराल होता है, निर्विचार का एक विराम। दो बादलों के बीच तुम देख सकते हो नीले आकाश को। तुम्हारा स्वभाव है अ-मन का। वहां कोई विचार नहीं होता, विशाल शून्यता के सिवाय, आकाश की नीलिमा के सिवाय कुछ नहीं होता। मन तो बस तैर रहा होता है सतह पर। ऐसा बहुत लोगों को घटित हुआ है।
ऐसा घटा मैडम क्यूरी को। उसे नोबल पुरस्कार मिल गया अ-मन के क्षण के लिए। वह कार्य कर रही थी गणित की एक समस्या पर; परिश्रम का कार्य कर रही थी। कुछ परिणाम नहीं निकल रहा था
और महीनों गुजर गए। फिर एक रात, अकस्मात वह अपनी नींद से जाग पड़ी; मेज तक गयी, उत्तर लिखा; वापस अपने बिस्तर पर जाकर सो गई। और उसके बारे में हर चीज भूल गयी। सुबह जब वह मेज तक आयी तो विश्वास न कर सकी कि उत्तर वहां पड़ा था। किसने लिखा था वह? फिर धीरे-धीरे उसे याद आ गया, किसी सपने की भांति ही. 'ऐसा रात्रि में घटा...' वही आयी थी और वह हस्तलिपि उसी की थी।
गहरी निद्रा में मन गिर जाता है और अ-मन कार्य करता है। मन सदा पुराना होता है, अमन सदा ताजा, युवा, मौलिक होता है। अ-मन सदा सुबह की ओस की भांति होता है-नितात ताजा, स्वच्छ। मन सदा गंदा होता है। उसे होना ही होता है; वह धूल इकट्ठी कर लेता है। धूल है स्मृति।
जब मैं देखता हूं तुम्हारी तरफ, मैं देखता हूं कि तुम्हारा मन बहुत पुराना है; बहुत सारे पिछले जन्म वहां इकट्ठे हो चुके हैं। लेकिन मैं ज्यादा गहरे भी देख सकता हूं। वहां है तुम्हारा अ-मन, जो कि बिलकुल ही संबंधित नहीं है समय से, इसीलिए न तो वह पुराना है और न ही आधुनिक। मनुष्य तो सदा ही पुराना होता है तो भी मनुष्य में कुछ विद्यमान होता है-वह चेतना-जो न तो पुरानी होती है और न ही नयी, या फिर, बिलकुल नित-नूतन होती है।
छठवां प्रश्न :
हम में से कुछ लोग आपके प्रवचन के दौरान सो जाते हैं या ऊंघती अवस्था में चले जाते हैं आप जरूर देखते ही होंगे ऐसा घटते हुए। क्या यह बात किसी सृजनात्मक विधायक प्रक्रिया का हिस्सा होती है? क्या हमें इसे घटने देना चाहिए इसके बारे में कोई अपराध-भाव अनुभव किए बिना या कि हमें ज्यादा बड़ा प्रयत्न करना चाहिए सजग बने रहने का?