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'नहीं। 'तीनों के तीनों हैरान थे। वे कुछ नहीं समझ पाए थे। तीनों ही बोले, 'तुम कह क्या रहे हो? तुम हर चीज के लिए कह देते हो नहीं। तो फिर तुम कर क्या रहे हो?' वह आदमी बोला, 'मैं सिर्फ यहां खड़ा हुआ हूं कर कुछ नहीं रहा। '
यदि ऐसा संभव हो, तो यह होता है ध्यान का परम सत्य। यदि ऐसा संभव न हो, तो तुम्हें प्रयुक्त करनी होंगी विधियां, क्योंकि केवल विधियों द्वारा ऐसा संभव होगा। विधियों द्वारा, एक दिन तुम जान लोगे पूरी निरर्थकता को। ध्यान की सारी कार्य प्रणालियां स्वयं को अपने जूतों के फीतों द्वारा ही खींचने जैसी हैं। ध्यान की प्रणालियां बेतुकी हैं, लेकिन व्यक्ति को इसे जानना होता है। यह एक बड़ा बोध है। जब कोई बोध पा लेता है कि उसका ध्यान बेतुका है, तो वह बिलकुल गिर ही जाता है। महर्षि महेश योगी हैं विधियों के उन्मुख, जैसे कि विधियां ही सब कुछ हों। कृष्णमूर्ति हैं, विधियों के एकदम विरूद्ध। और यहां मैं हूं-विधियों के हक में, और विरुद्ध भी। कोई प्रणाली, कोई विधि तुम्हें एक बिंदु तक ले जाती है जहां कि तुम उसे गिरा सकते हो। महर्षि महेश योगी खतरनाक हैं। वे बहुत
लोगों को चला देंगे इस मार्ग पर, लेकिन वे कभी न पहुंचेंगे लक्ष्य तक। क्योंकि मार्ग इतना महत्वपूर्ण मान लिया गया है। वे लाखों लोगों की शुरुआत कर देंगे विधियों पर, और फिर विधियां इतनी महत्वपूर्ण हो जाती हैं कि कोई रास्ता नहीं बचता उन्हें गिरा देने का।
फिर हैं कृष्णमूर्ति-हानिरहित, लेकिन व्यर्थ भी। वे कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचा सकते। कैसे वे
ते हैं नुकसान? वे कभी किसी को मार्ग पर चलाते ही नहीं। वे बात करते हैं लक्ष्य की, और तुम बहुत ज्यादा दूर होते हो लक्ष्य से। तुम महर्षि महेश योगी के जाल में पड़ जाओगे। हो सकता है कृष्णमूर्ति तुम्हें बौद्धिक रूप से आकर्षित करते हों, लेकिन कोई मदद नहीं दे पाएंगे। वे नुकसान नहीं पहंचा सकते। वे संसार के सर्वाधिक हानिरहित आदमी हैं।
और फिर हूं मैं। मैं तुम्हें मार्ग देता हूं-उसे वापस ले लेने को ही। मैं तुम्हें विधियां देता हूं -एक विधि नहीं, बहुत सारी विधियां-खेलने के खिलौनों की भांति। और प्रतीक्षा करता हूं उस घड़ी की जब तुम सारी विधियों के प्रति कहोगे, 'स्वाहा, अग्नि की भेंट चढ़ जाओ!'
आज इतना ही।