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व्यक्ति की भांति जीते हो संसार में, बिना किसी भय के। लेकिन पतंजलि के साथ चरण चरण बढ़ना। ध्यान के विषय अधिकाधिक सूक्ष्म होते हैं।
इन सूक्ष्म विषयों से संबंधित समाधि का प्रांत सूक्ष्म ऊर्जा की निराकार अवस्था तक फैलता है।
यही है आठवां चित्र। समाधि का आयाम जो कि जुडा हुआ है, इन ज्यादा सूक्ष्म विषयों के साथ, वह अधिकाधिक सूक्ष्म होता जाता है, और एक घड़ी आती है जब आकार मिट जाता है और वहां होता है निराकार |
- सूक्ष्म ऊर्जा की निराकार अवस्था तक फैलता है।'
ऊर्जाएं इतनी सूक्ष्म होती हैं कि तुम उनका चित्र नहीं बना सकते। तुम मूर्ति नहीं बना सकते उनकी । केवल शून्यता ही दर्शा सकती है उन्हें एक शून्य; वह आठवां चित्र धीरे-धीरे, तुम समझ जाओगे कि कैसे बाकी के ये दूसरे दो चित्र आ पहुंचे।
पतंजलि को मैं धार्मिक जगत का वैज्ञानिक कहता हूं रहस्यवाद का गणितज्ञ कहता हूं अतर्क्य का तार्किक कहता हूं। दो विपरीतताए मिलती हैं उनमें। यदि कोई वैज्ञानिक पढ़ता है पतंजलि के योगसूत्रों को तो वह तुरंत ही समझ जाएगा । एक विटगेन्क्रीन, एक तार्किक मन तुरंत एक घनिष्ठ संबंध अनुभव करेगा पतंजलि के साथ ।
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वे पूर्णतया तर्कयुक्त हैं। और यदि वे ले जाते हैं तुम्हें अतर्क्य की ओर, तो वे ले चलते हैं तुम्हें ऐसे तर्कयुक्त सोपानों द्वारा कि तुम हरगिज नहीं जानते कि कब उन्होंने छोड़ दिया तर्क को और वे ले जा चुके तुम्हें उसके पार ।
वे बढ़ते हैं दार्शनिक की भांति, चिंतक की भांति और वे बनाते हैं इतने सूक्ष्म भेद कि जिस क्षण वे तुम्हें ले जाते हैं निर्विचार में, अ-चितन में, तो तुम नहीं जान पाओगे कि कब लग गई छलांग । उन्होंने उस छलांग को बहुत सारे छोटे सोपानों में काट दिया है।
पतंजलि के साथ तुम कभी भी भय अनुभव नहीं करोगे, क्योंकि वे जानते हैं कि कहां तुम अनुभव करोगे भय। वे सोपानों को ज्यादा और ज्यादा छोटा तराश देते हैं, लगभग ऐसे ही जैसे कि तुम समतल भूइम पर चल रहे होओ। वे इतने धीरे – धीरे तुम्हें ले चलते हैं कि तुम नहीं देख सकते कि कब घट गई छलांग, कब पार कर ली तुमने सीमा ।
और वे एक कवि भी हैं और एक रहस्यवादी भी हैं- एक बहुत ही विरल सम्मिलन रहस्यवादी हुए हैं तिलोपा की भांति; महान कवि हुए हैं उपनिषदों के ऋषियों की भांति महान तार्किक हुए हैं अरस्तु की