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है अशुद्धता। जब तुम अज्ञात को जानने की कोशिश करते हो तुम्हारे भीतर के अज्ञात द्वारा, तब उतरता है एक रहस्योद्घाटन।
ऐसा हुआ. मुल्ला नसरुद्दीन ने नदी में एक बहुत बड़ी मछली पकड़ी। भीड़ इकट्ठी हो गयी, क्योंकि किसी ने देखी न थी कभी इतनी बड़ी मछली। मुल्ला नसरुद्दीन ने देखा मछली की तरफ, विश्वास न कर सका कि ऐसा संभव था-इतनी बड़ी मछली! खुली-फटी दृष्टि सहित वह घूम लिया मछली के चारों ओर लेकिन फिर भी विश्वास न कर सका। उसने छुआ मछली को लेकिन फिर भी विश्वास न कर सका, क्योंकि उसने सुना–पढा था इतनी बड़ी मछली के बारे में केवल मछेरों की अविश्वसनीय कथाओं में ही। भीड़ भी वहां आ खड़ी हुई थी-अविश्वसनीय दृष्टि सहित ही। तब मुल्ला नसरुद्दीन कहने लगा, 'कृपया मेरी मदद करें इस बड़ी मछली को वापस नदी में फेंकने में। यह मछली ही नहीं है, यह एक झूठ है।'
कोई चीज सच होती है यदि वह तुम्हारे पिछले अनुभव के अनुकूल बैठती हो। यदि वह अनुकूल नहीं पड़ती, तो वह झूठ होती है। तुम परमात्मा में विश्वास नहीं कर सकते क्योंकि वह तुम्हारे पिछले अनुभव के अनुरूप नहीं है। तुम ध्यान में विश्वास नहीं कर सकते क्योंकि तुम रहते आए हो सदा बाजार में, और तुम केवल बाजार की वास्तविकता को जानते हो, गणनापरक मन की, व्यापारिक मन की वास्तविकता को ही। तुम उस उत्सव के बारे में कुछ नहीं जानते-जो है शुद्ध, स्वाभाविक, बिलकुल कारण रहित, अहेतुक।
यदि तुम जीए हो वैज्ञानिक संसार में, तो तुम विश्वास नहीं कर सकते कि कोई चीज सहज-स्फूर्त हो सकती है, क्योंकि वैज्ञानिक जीता है कार्यकारण के संसार में। प्रत्येक चीज सकारण होती है; कोई चीज सहज-स्फूर्त नहीं है। अत: जब वैज्ञानिक सुनते हैं कि कुछ ऐसा संभव है जो कि सहज-स्फूर्त हैजब हम कहते हैं सहज-स्फर्त, तो हमारा मतलब होता है कि उसका कोई कारण नहीं, अचानक बिना किसी वजह, बिना जाने-बूझे हुआ है वह-वैज्ञानिक तो विश्वास ही नहीं कर सकता। वह तो कहेगा, 'यह मछली बिलकुल नहीं है, यह एक झूठ है। उसे वापस फेंक दो नदी में।'
लेकिन वे जिन्होंने कि काम किया है आंतरिक संसार में, जानते हैं कि ऐसी घटनाएं हैं जो कि अकारण होती हैं। न ही केवल वे यही जानते हैं, वे जानते हैं कि सारा अस्तित्व ही अकारण है। वह भिन्न होता है, उस वैज्ञानिक मन से समग्रतया विभिन्न संसार होता है वह।
जो कुछ भी तुम देखते हो, इससे पहले कि तुम ठीक से देखो भी, व्याख्या प्रवेश कर चुकी होती है। निरंतर मैं देखता हूं लोगों को। मैं बात कर रहा होता हूं उनसे और यदि वह अनुकूल बैठता है, चाहे उन्होंने अभी कुछ कहा भी नहीं होता है, तो वे मुझे दे देते हैं एक आंतरिक सहमति, 'हौ' वे कह रहे होते हैं, 'ठीक।' यदि वह नहीं अनुकूल बैठता उनके दृष्टिकोणों के साथ, चाहे उन्होंने कुछ कहा ही नहीं