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यदि तुम चाहते हो कि अगला क्षण अप्रसन्नता वाला हो, तो तुम्हें इसी क्षण अप्रसन्न होना होगा, क्योंकि अप्रसन्नता में से ही अप्रसन्नता उत्पन्न होती है। और प्रसन्नता में से उत्पन्न होती है प्रसन्नता। जो कुछ तुम प्राप्त करना चाहते हो अगले क्षण में, तुम्हें उसे बोना होगा बिलकुल अभी। एक बार चिंता को आने दिया जाता है और तुम सोचने लगते कि अराजकता आएगी, तो वह आएगी ही। तुम उसे ले ही आए हो। अब तुम्हें पास रखना ही होगा उसे; वह आ ही पहुंची है! अगली घड़ी की प्रतीक्षा करने की कोई जरूरत नहीं; वह पहले से वहां है ही।
इसे जरा खयाल में ले लेना, और यह सचमुच ही कुछ अजीब बात है : जब तुम उदास होते हो तो तुम कभी नहीं सोचते कि यह बात काल्पनिक हो सकती है। कभी मैंने ऐसा आदमी नहीं देखा जो कि उदास हो और कहता हो मुझसे कि शायद यह बात काल्पनिक ही है। उदासी संपूर्णतया वास्तविक होती है! लेकिन प्रसन्नता? -तुरंत कुछ गलत हो जाता है और तुम सोचने लगते हो, 'शायद यह बात काल्पनिक ही है। ' जब कभी तुम तनावपूर्ण होते, तो तुम कभी नहीं सोचते कि यह काल्पनिक बात है। यदि तुम सोच सकते हो कि तुम्हारा तनाव और पीड़ा काल्पनिक है, तो वह तिरोहित हो जाएगी। और यदि तुम सोचते हो कि तुम्हारी शाति और प्रसन्नता काल्पनिक हैं, तो वे तिरोहित हो जाएंगी।
जो कुछ धारण किया जाता है वास्तविकता के रूप में, वह वास्तविक हो जाता है। जो कुछ धारण किया जाता है अवास्तविकता के रूप में, वह हो जाता है अवास्तविक। तुम्ही हो निर्माता तुम्हारे चारों
ओर के सारे संसार के, इस बात को खयाल में ले लेना। प्रसन्नता की, आनंद की घड़ी को पा लेना बहुत दुर्लभ होता है। इसे मत गंवा देना सोचने-विचारने में ही। लेकिन यदि तुम कुछ नहीं करते, तो चिंता के आने की संभावना है। यदि तुम कुछ नहीं करते-यदि तुम नृत्य नहीं करते, यदि तुम गीत नहीं गाते, यदि तुम बांटते नहीं, तो वैसी संभावना होती है। वही ऊर्जा जो हो सकती है सृजनात्मक, वह सृजन कर देगी चिंता का। वह भीतर नए तनाव बनाना शुरू कर देगी। ऊर्जा को होना है सृजनात्मक। यदि तुम उसका उपयोग प्रसन्नता के लिए नहीं करते, तो वही ऊर्जा प्रयुक्त हो जाएगी अप्रसन्नता के लिए। और अप्रसन्नता के लिए तुम्हारे पास इतने गहरे रूप से बद्धमूल हुई आदतें हैं कि उसके लिए ऊर्जा प्रवाह बहुत मुक्त और स्वाभाविक होता है। प्रसन्नता लाने के लिए यह एक श्रमसाध्य कार्य होता है।
तो पहले कुछ दिन तुम्हें निरंतर रूप से जागरूक रहना होगा। जब कभी कोई प्रसन्नता की घड़ी आए, होने दो उसकी पकड़ तुम पर, करने दो तुम्हें वशीभूत। इतनी समग्रता से उसका आनंद मनाओ कि अगली घड़ी कुछ अलग तरह की न हो सके। कहां से होगी वह अलग? कहौ से आएगी वह?
तुम्हारा समय निर्मित होता है तुम्हारे भीतर। तुम्हारा समय मेरा समय नहीं है। उतने ही समानांतर समय अस्तित्व रखते हैं जितने कि मन होते हैं। कोई एक समय नहीं है। यदि एक समय होता, तो कठिनाई हो गया होती। तब सारी दुखी मानव-जाति के बीच, कोई बुद्ध नहीं हो सकता था, क्योंकि