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ईसाई संतों के कारण, जो कि परमात्मा को प्रमाणित करने की कोशिश करते रहे हैं, सारा पश्चिम नास्तिक' हो गया है। पूरब में हमने कभी ऐसी कोशिश नहीं की; हमने कभी कोई प्रमाण नहीं दिया । जरा उपनिषदों में झांको-स्व भी प्रमाण अस्तित्व नहीं रखता। वे इतना ही कहते हैं, 'परमात्मा है। यदि तुम जानना चाहते हो, तुम जान सकते हो। यदि तुम नहीं जानना चाहते तो वह तुम्हारा चुनाव है लेकिन इसके लिए कोई प्रमाण नहीं है।
वह अवस्था होती है निर्वितर्क समाधि की वह समाधि बार अस्तित्वगत होती है। लेकिन वह भी अंतिम नहीं उसकी चर्चा हम आगे बाद में करेंगे।
आज इतना ही।
प्रवचन 24- प्रयास, अप्रयास और ध्यान
दिनांक 4 मार्च, 1975;
श्री रजनीश आश्रम पूना ।
प्रश्नसार:
1
जो होती है बिना तर्क की वह समाधि पहली एक और अंतिम सोपान अस्तित्व रखता है।
1- प्रकृति विरोध करती है अव्यवस्था का और अव्यवस्था स्वयं ही व्यवस्थित हो जाती है यथासमय तो क्यों दुनिया हमेशा अराजकता और अव्यवस्था में रहती रही है?
2- कैसे पता चले कि कोई व्यक्ति रेचन की ध्यान विधियों से गुजर कर अराजकता के पार चला गया है?
3 - मन को अपने से शांत हो जाने देना है, तो योग की सैकड़ों विधियों की क्या अवश्यक्ता है?