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कैसे छुटकारा हो स्मृतियों से?-उन्हें देखना, उनका साक्षी बनना। और हमेशा याद रखना इसे : यह तुम्हें घटा है, पर यह तुम नहीं हो। निस्संदेह तुम किसी परिवार में उत्पन्न हुए, लेकिन यही नहीं हो तुम; ऐसा तुम्हें घटित हुआ है। यह तुम्हारे बाहर की घटना है। बेशक, तुम्हें किसी ने कोई एक नाम दे दिया है। इसकी अपनी उपयोगिता है तो भी नाम नहीं हो तुम। निस्संदेह, तुम्हारा एक आकार है, तो भी आकार नहीं हो तुम। रूप तो मात्र एक घर है जिसमें कि तुम्हारा होना घटित हआ है। और आकार तो एक देह भर है जिसमें तुम्हारा होना घटित हुआ है। और देह तुम्हें दी गयी है तुम्हारे माता-पिता द्वारा। वह एक उपहार है, पर वह तुम नही हो।
देखना और भेद जानना। यही है जिसे पूरब में कहते हैं विवेक और विवेचन : तुम विवेचन करते हो निरंतर। विवेचन करते जाना और एक घड़ी आएगी जब तुमने वह सब मिटा दिया होगा जो तुम नहीं हो। अकस्मात, उस अवस्था में, पहली बार तुम अपना सामना करते हो, तुम साक्षात्कार करते हो तुम्हारी अपनी सत्ता का। सारे तादात्म्य काटते चले जाओ जो तुम नहीं हो : परिवार, देह, मन। उस शून्यता में, जब हर वह चीज जो तुम नहीं हो, फेंक दी जाती है, तो अचानक तुम्हारी सत्ता उभर आती है। पहली बार तुम स्वयं का साक्षात्कार करते हो, और वह साक्षात्कार बन जाता है नियंत्रण।
यह शब्द 'नियंत्रण' वस्तुत: ही असुंदर होता है। मैं नहीं चाहूंगा इसका प्रयोग करना। लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकता, क्योंकि पतंजलि प्रयोग करते हैं इसका। इस शब्द से ही ऐसा जान पड़ता है कि कोई किसी दूसरे को नियंत्रित कर रहा है।
पतंजलि जानते हैं, और बाद में वे कहेंगे कि तुम उपलब्ध होते हो वास्तविक समाधि को तभी जब कोई नियंत्रण और नियंत्रण करने वाला नहीं होता है।
अब हमें सूत्रों में प्रवेश करना चाहिए।
जब मन की क्रिया नियंत्रण में होती है तब मन बन जाता है शुद्ध स्फटिक की भांति फिर वह समान रूप से प्रतिबिंबित करता है बोधकर्ता को बोध को और बोध के विषय को।
'जब मन की क्रिया नियंत्रण में होती है...।' अब तुम समझे कि 'नियंत्रण में' से क्या अर्थ है मेरा-तुम होते हो केंद्र में और वहां से तुम देखते हो मन की ओर। तुम बैठे हुए होते हो केंद्र में और वहां से तुम देखते हो मन की ओर। तुम बैठे हुए होते हो घर में और तुम देखते हो बादलों की तरफ, और गर्जन की तरफ, और बिजली और वहां से आती बारिश की तरफ। तुमने गिरा दिए हैं अपने सारे कपड़े-धल भरे कपड़े और गंदे कपड़े। वस्तुत: कपड़े हैं ही नहीं, मात्र तहें हैं गंदगी की। इसलिए तुम