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उसे उस पर ही छोड़ देते हो। यदि तुम उसे नहीं छोडते, तो वह लंबे समय तक अव्यवस्थित रह सकती है, क्योंकि तुम उसे निरंतर फिर-फिर हिला-इला रहे होओगे।
प्रकृति घृणा करती है अव्यवस्था से। प्रकृति प्रेम करती है सुव्यवस्था को। प्रकृति संपूर्णतया सुव्यवस्थागत है, अत: अव्यवस्था केवल एक अस्थायी अवस्था हो सकती है। यदि तम समझ सको इसे, तो मन के साथ कुछ मत करना। पागल मन को उस पर ही छोड़ देना। तुम बस देखना, ज्यादा ध्यान मत देना। इसे खयाल में रख लेना : देखने और ध्यान देने में भेद होता है। जब तुम ध्यान देते हो, तुम बहुत ज्यादा आकर्षित होते हो। जब तुम केवल देखते हो, साक्षी मात्र होते हो तो तुम तटस्थ होते हो।
बुद्ध इसे कहते हैं उपेक्षा, परम और समग्र उपेक्षा। मात्र एक ओर बैठे रहना, नदी बहती रहती है। और चीजें ठहरती जाती हैं; कूड़ा-करकट नीचे तल पर बैठ जाता है और सूखे पत्ते बह चुके होते हैं अकस्मात, नदी स्फटिकवत स्वच्छ होती है।
इसीलिए पतंजलि कहते हैं, 'जब मन की क्रिया नियंत्रण में होती है, तो मन शुद्ध स्फटिक बन जाता है, और जब मन शुदध स्फटिक बन जाता है, तो तीन चीजें प्रतिबिंबित होती हैं उसमें। '
फिर वह समान रूप से प्रतिबिंबित करता है बोधकर्ता को बोध को और बोध के विषय को।
जब मन संपूर्णतया साफ होता है, एक सुव्यवस्था बन गया होता है, तो भ्रम नहीं रहता और चीजें थम चुकी होती हैं, तब तीन चीजें प्रतिबिंबित होती हैं उसमें; वह दर्पण बन जाता है, तीन आयामों का दर्पण। बाहर का संसार, विषय-वस्तुओं का संसार प्रतिबिंबित होता है। भीतर का संसार, आत्मपरक चेतना का संसार प्रतिबिंबित होता है। दोनों के बीच का संबंध, वह बोध प्रतिबिंबित होता है और होता है बिना किसी विकार के।
मन के साथ तुम्हारे बहुत ज्यादा घुल-मिल जाने से ही ऐसा होता है कि विकार चला आता है। क्या होता है विकार? मन एक सीधी यंत्र-क्रिया है। यह आंखों की भांति है; तुम आंखों द्वारा देखते हो और संसार प्रतिबिंबित हो जाता है। लेकिन आंखों के पास तो केवल एक आयाम है : वे तो केवल संसार को प्रतिबिंबित कर सकती हैं, वे तुम्हें प्रतिबिंबित नहीं कर सकतीं। मन त्रिआयामी घटना है, बड़ी गहरी। वह सब कुछ प्रतिबिंबित कर सकता है, और बिना किसी विकार के। साधारणतया तो वह विकृत ही करता है। जब कभी तुम देखते हो किसी चीज को यदि तुम मन से अलग नहीं होते, तो चीज बिगड जाएगी। तुम कुछ और देखोगे। तुम इसमें अपना ज्ञान मिला दोगे, अपने भाव मिला दोगे।