Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 05
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-उपदेशे एजन्तस्य धातोराकारादेशो भवति, शिदादिभिन्ने प्रत्यये परत:।
__ उदा०-(ग्लै) ग्लाता, ग्लातुम्, ग्लातव्यम्। (शो) निशाता, निशातुम्, निशातव्यम्।
आर्यभाषा: अर्थ-(उपदेशे) पाणिनिमुनि के उपदेश में (एच:) एच् जिसके अन्त में है उस (धातो:) धातु को (आत्) आकार आदेश होता है (अशिति) शित् जिसके आदि में है, उससे भिन्न प्रत्यय परे होने पर।
उदा०-(ग्लै) लाता। ग्लानि करनेवाला। ग्लातुम् । ग्लानि करने के लिये। ग्लातव्यम् । ग्लानि करनी चाहिये। (शो) निशाता। तीक्ष्ण करनेवाला। निशातुम् । तीक्ष्ण करने के लिये। निशातव्यम् । तीक्ष्ण करना चाहिये।
सिद्धि-(१) ग्लाता । ग्लै+तृच् । गला+तृ। ग्लातृ+सु। ग्लाता।
यहां ग्लै हर्षक्षये' (भ्वा०प०) इस एजन्त धातु से ‘ण्वुल तृचौ' (३।१।१३३) से तच् प्रत्यय है। इस अशित्-आदि प्रत्यय के परे होने पर इस सूत्र से ग्लै' के एच् (ऐ) को आकार आदेश होता है। ऐसे ही 'नि' पूर्वक शो तनूकरणे' (दि०प०) धातु से तृच् प्रत्यय करने पर-निशाता।
(२) ग्लातुम् । यहां पूर्वोक्त ग्लै' धातु से तुमुन्णमुलौ क्रियायां क्रियार्थायाम्' (३।३।१०) से तुमुन् प्रत्यय है। इस अशित्-आदि प्रत्यय के परे होने पर इस सूत्र से ग्लै' के एच् (ए) को आकार आदेश होता है। ऐसे ही नि' पूर्वक शो' धातु सेनिशातव्यम्।
यहां यस्मिन् विधिस्तदादावलग्रहणे' इस परिभाषा से 'अशिति' इस वचन में शिद्भाव जिसके आदि में नहीं है, वहां एजन्त धातु को आकार आदेश होता है, जैसे-जग्ले, मम्ले । यहां लिट् लकार के त' प्रत्यय को 'एश्’ आदेश है, किन्तु वह प्रत्यय शित्-आदि नहीं अपितु शिदन्त है, अत: यहां 'ग्लै' धातु को आकार आदेश हो जाता है। शित्-आदि 'शप्' प्रत्यय परे होने पर तो आकार आदेश नहीं होता है जैसे-ग्लायति, म्लायति । आकारादेश-प्रतिषेधः
(२) न व्यो लिटि।४६ । प०वि०-न अव्ययपदम्, व्य: ६।१ लिटि ७।१। अनु०-धातो: आत्, एच इति चानुवर्तते। अन्वय:-लिटि व्यो धातोरेच आद् न।