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छ काय के बोल ।
( ५७ ) ऊंचा जाने पर सूर्य का विमान आता है, पृथ्वी से ८८० योजन ऊंचा जाने पर चन्द्रमा का विमान पाता है । पृथ्वी से ८८४ योजन ऊंचा जाने पर नक्षत्र का विमान पाता है, ८८८ योजन जाने पर बुध का तारा आता है, ८६१ योजन जाने पर शुक्र का तारा प्राता है, ८६४ योजन ऊंचा जाने पर बृहस्पति का ताग आता है, ८६७ योजन ऊंचा जाने पर मंगल का तारा आता है, पृथ्वी से ६०० योजन ऊंचा जाने पर शनिश्चर का तारा अाता है।
इस प्रकार ११० योजन ज्योतिष चक्र जाड़ा है । पांच चर है पांच स्थिर है । अढाई द्वीप में जो चलते हैं वो चर और अढाई द्वीप के बाहर जो चलते नहीं वे स्थिर हैं। जहां सूर्य है वहां सूर्य और जहां चन्द्र है वहां चन्द्र ।
वैमानिक के भेद-वैमानिक के ३८ भेद । ३ किल्विषी, १२ देवलोक, ६ लोकांतिक, ६ ग्रीयवेक, ५ अनुत्तर विमान एवं ३८ । . किल्विषी देवः-तीन पल्योपम की स्थिति वाले प्रथम किल्बिपी पहले दूसरे देवलोक के नीचे के भाग में रहते हैं २ तीन सागर की स्थिति वाले दूसरे किल्विषी तीसरे चोथे देवलोक के नीचे के भागमें रहते हैं ३ तरह सागर की स्थिति वाले तीसरे किल्विषी छठे देवलोक के नीचे के भागमें रहते हैं ये देव ढेढ़ ( भङ्गी ) देव पणे
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