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छ काय के बोल ।
( ५५ )
पन्द्रह परमाधामी-१ आम्र ( अम्ब ) २ आम्र रस ३ शाम ४ सबल ५ रुद्र ६ महा रुद्र ७ काल ८ महा. काल ६ असि पत्र १० धनुष्य ११ कुम्भ १२ वालु १३ वैतरणी १४ खरस्वर १५ महा घेष ।
एवं कुल २५ प्रकार के भवनपति कहे । पहेली नरक में एक लाख अटयो तर हजार योजन का पोलार है। जिसमें बारह अांतरा है। जिसमें से नीचे के दश अांतरे में भानपति देव रहते हैं।
वाण व्यन्तर देवः-धाण व्यन्तर देव के २६ भेद १ सोलह जाति के देव २ दश जाति के भिका देव, एवं २६ भेद ।
सोलह जाति के देवः-१ पिशाच २ भूत ३ यक्ष ४ राक्षस ५ किन्नर ६ किंपुरुष ७ महोरग ८ गंधर्व ६ प्राण पन्नी १० पाण पन्नी ११ इसीवाई १२ भूइवाई १३ कंदीय १४ महा कंदीय १५ कोहंड १६ पतंङ्गा
दश जाति के जुभिकाः-१ आण भिका २ प्राण जुभिका ३ लयन जूंभिका ४ शयन नॅमिका ५ वस्त्र जृमिका ६ फूल चूंभिका ७ फल जूंभिका ८ कोफल मिका ६ विद्युत भिका १० अविद्युत चूँभिका एवं ( १६+१०) २६ जाति के वाण व्यन्तर देव हुवे । पृथ्वी का दल एक हजार योजन का है। जिसमें से सो योजन का दल नीचे व
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