Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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- ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ..
अथवा जाने किसी विषय को एकदम समझ लेना, कोई विषम समस्या उपस्थित होने पर तत्क्षण उसका समाधान खोज लेने वाली बुद्धि।
२. वैनयिकी - विनय से प्राप्त होने वाली बुद्धि।
३. कर्मजा - कोई भी कार्य करते-करते, चिरकालीन अभ्यास से जो दक्षता प्राप्त होती है वह कर्मजा, कार्मिकी अथवा कर्मसमुत्था बुद्धि कही जाती है।
४. पारिणामिकी - उम्र के परिपाक से-जीवन के विभिन्न अनुभवों से प्राप्त होने वाली बुद्धि।
मतिज्ञान मूल में दो प्रकार का है -श्रुतनिश्रित और अश्रुतनिश्रित। जो मतिज्ञान, श्रुतज्ञान के पूर्वकालिक संस्कार के आधार से-निमित्त से उत्पन्न होता है किन्तु वर्तमान में श्रुतनिस्पेक्ष होता है, वह श्रुतनिश्रित कहा जाता है। जिसमें श्रुतज्ञान के संस्कार की तनिक भी अपेक्षा नहीं रहती वह अश्रुतनिश्रित मतिज्ञान कहलाता है। उल्लिखित चारों प्रकार की बुद्धियाँ इसी विभाग के अन्तर्गत हैं। चारों बुद्धियों को सोदाहरण विस्तृत रूप से समझने के लिए नन्दीसूत्र देखना चाहिए।
महारानी धारिणी
(१६) तस्स णं सेणियस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था जाव सेणियस्स रण्णो इट्ठा जाव विहरइ।
शब्दार्थ - तस्स - उसके, इट्टा - इष्ट-प्रिय।
भावार्थ - राजा श्रेणिक की रानी का नाम धारिणी था। वह उत्तम दैहिक लक्षण, सौन्दर्य एवं गुणातिशय युक्त थी। राजा के लिए वह इष्ट-प्रीतिकर-प्रिय थी। - विवेचन - यहाँ 'जाव' शब्द से यह सूचित किया गया है कि महाराज श्रेणिक की रानी धारिणी के सौन्दर्य सौष्ठव, माधुर्य, सौकुमार्य आदि से सम्बद्ध विशेषणात्मक विस्तृत वर्णन अन्य आगमों से उद्धृत कर लिया जाए।
स्वप्नदर्शन
(१७)
तए णं सा धारिणी देवी अण्णया कयाइ तंसि तारिसगंसि छक्कट्ठग
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