Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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संघाट नामक दूसरा अध्ययन - वृत्तांत की गवेषणा
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प्राभृत-भेंट, णगरगुत्तिया - नगर गुप्तिक-नगर की रक्षा करने वाले कोतवाल आदि, उवणेइ - उपनयति-उपनीत करता है, देता है। ___भावार्थ - कुछ देर बाद धन्य सार्थवाह होश में आया, कुछ धीरज धारण किया। बालक देवदत्त को सब जगह ढुंढवाया किंतु उसका कहीं भी पता नहीं चल सका। ___तब वह अपने घर आया। बहुमूल्य भेंट लेकर नगर रक्षकों के पास गया। उन्हें भेंट अर्पित की और उनसे बोला - मेरा पुत्र, भद्रा का आत्मज देवदत्त नामक शिशु हमें अत्यंत इष्ट एवं प्रिय है। उदुंबर के पुष्प की तरह असाधारण है।
. (२७) . तए णं सा भद्दा देवदिण्णं ण्हायं सव्वालंकारविभूसियं पंथगस्स हत्थे दलाइ जाव पायवडिए तं मम णिवेदेइ, तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! देवदिण्णस्स दारगस्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं कयं।
भावार्थ - मेरी पत्नी भद्रा ने देवदत्त को स्नान कराया, सब प्रकार के आभरणों से विभूषित किया और पन्थक नामक दासपुत्र को खेलाने हेतु सौंपा।
आगे की सारी घटना बतलाते हुए उसने उनसे कहा कि हमने बालक देवदत्त की सब जगह खोज करवा ली, पर वह कहीं नहीं मिला।
(२८) तएं णं ते. णगरगोत्तिया धण्णेणं सत्थवाहेणं एवं वुत्ता समाणा सण्णद्धबद्ध-वम्मिय-कवया उप्पीलिय-सरासण-पट्टिया जाव गहिया-उहपहरणा धण्णेणं सत्थवाहेणं सद्धिं रायगिहस्स णगरस्स बहूणि अइगमणाणि य जाव पवासु य मग्गणगवेसणं करेमाणा रायगिहाओ णयराओ पडिणिक्खमंति २ ता जेणेव जिण्णुजाणे जेणेव भग्गकुवए तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता देवदिण्णस्स दारगस्स सरीरगं णिप्पाणं णिच्चेजें जीवविप्पजढं पासंति २ त्ता हा हा अहो अकजमि तिकटु देवदिण्णं दारगं भग्गकूवाओ उत्तारेंति २ ता धण्णस्स सत्थवाहस्स हत्थे दलयंति।
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