Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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रोहिणी नामक सातवां अध्ययन - उपसंहार
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भावार्थ - आर्य सुधर्मा स्वामी अध्ययन का उपसंहार करते हुए बोले-श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने सातवें ज्ञाताध्ययन का यह अर्थ प्रज्ञापित किया, जिसे मैंने तुम्हारे समक्ष आख्यात किया है।
__ विवेचन - यद्यपि प्रस्तुत अध्ययन का उपसंहार धर्मशिक्षा के रूप में किया गया है और धर्मशास्त्र का उद्देश्य मुख्यतः धर्मशिक्षा देना ही होता है, तथापि उसे समझाने के लिए जिस कथानक की योजना की गई है वह गार्हस्थिक-पारिवारिक दृष्टि से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। 'योग्यं योग्येन योजयेत्' यह छोटी-सी उक्ति अपने भीतर विशाल अर्थ समाये हुए हैं। प्रत्येक व्यक्ति में योग्यता होती है किन्तु उस योग्यता का सुपरिणाम तभी मिलता है जब उसे अपनी योग्यता के अनुरूप कार्य में नियुक्त किया जाए। मूलभूत योग्यता से प्रतिकूल कार्य में जोड़ देने पर योग्य से योग्य व्यक्ति भी अयोग्य सिद्ध होता है। उच्चतम कोटि का प्रखरमति विद्वान् बढ़ई'सुथार के कार्य में अयोग्य बन जाता है। मगर ‘योजसस्तव दुर्लभः' अर्थात् योग्यतानुकूल योजना करने वाला कोई विरला ही होता है। धन्यसार्थवाह उन्हीं विरल योजकों में से एक था। अपने परिवार की सुव्यवस्था करने के लिए उसने जिस सूझ-बूझ से काम लिया वह सभी के लिए मार्गदर्शक है। सभी इस उदाहरण से लौकिक और लोकोत्तर कार्यों को सफलता के साथ सम्पन्न कर सकते हैं। ___ उदाहरण से स्पष्ट है कि प्राचीन काल में संयुक्त परिवार की प्रथा थी। वह अनेक दृष्टियों से उपयोगी और सराहनीय थी। उससे आत्मीयता की परिधि विस्तृत बनती थी और सहनशीलता आदि सद्गुणों के विकास के अवसर सुलभ होते थे। आज यद्यपि शासन-नीति, विदेशी प्रभाव एवं तज्जन्य संकीर्ण मनोवृत्ति के कारण परिवार विभक्त होते जा रहे हैं, तथापि इस प्रकार के उदाहरणों से हम बहुत लाभ उठा सकते हैं।
— चारों पुत्रवधुओं ने बिना किसी प्रतिवाद के मौन भाव से अपने श्वसुर के निर्णय को स्वीकार कर लिया। वे भले मौन रहीं, पर उनका मौन ही मुखरित होकर पुकार कर, हमारे समक्ष अनेकानेक स्पृहणीय संदेश-सदुपदेश सुना रहा है।
उवणय-गाहाओ - जह सेट्ठी तह गुरुणो, जह णाइजणो तहा समण संघो। जह बहुया तह भव्वा, जह सालिकणा तह वयाइं॥१॥
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