Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
एजमाणं जाव णिवेसेह, किण्णं तुन्भं अज ओहयं जाव झियायह? तए णं कुंभए मल्लि विदे० एवं वयासी-एवं खलु पुत्ता! तव कज्जे जियसत्तुपामोक्खेहिं छहिं राईहिं दूया संपेसिया। ते णं मए असक्कारिया जाव णिच्छूढा। तए णं ते . जियसत्तू पामोक्खा तेसिं दूयाणं अंतिए एयमढें सोच्चा परिकुविया समाणा मिहिलं रायहाणिं णिस्संचारं जाव चिट्ठति। तए णं अहं पुत्ता। तेसिं जियसत्तु पामोक्खाणं छण्हं राईणं अंतराणि अलभमाणे जाव झियामि।
भावार्थ - राजकुमारी मल्ली अपने पिता कुंभ से बोली-तात्! आप जब कभी मुझे आते देखते, आदर करते, गोद में बिठाते। आप किंकर्तव्यविमूढ की तरह चिंतातुर क्यों है? यह सुनकर राजा कुंभ ने राजकुमारी मल्ली से कहा-पुत्री! तुम्हें प्राप्त करने के लिए जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने दूत भेजे। मैंने उनको असत्कार यावत् अपमान कर निकाल दिया। उन दूतों से जितशत्रु आदि राजाओं ने यह सुना तो वे अत्यंत कुपित हो गए और मिथिला नगरी को घेर लिया, इसे संचार रहित कर दिया। ऐसा कर वे पड़ाव लगाए यहीं टिके हैं। पुत्री! मैं प्रयत्न करके भी उन छहों राजाओं के छिद्र आदि नहीं जान सका। अतएव में चिंता निमग्न हूँ।
(१३५) तए णं सा मल्ली विदे० कुंभयं रायं एवं वयासी-मा णं तुन्भे ताओ! ओहयमण संकप्पा जाव झियायह तुब्भे णं ताओ! तेसिं जियसत्तुपामोक्खाणं छण्हं राईणं पत्तेयं २ रहसियं दूय संपेसे करेह एगमेगं एवं वयह-तव देमि मल्लिं विदे० तिकटु संझाकाल समयंसि पविरल मणुस्संसि णिसंत पडिणिसंतसिं पत्तेयं २ मिहिलं रायहाणिं अणुप्पवेसेह २ त्ता गब्भघरएसु अणुप्पविसेह मिहिलाए रायहाणीए दुवाराई पिहेइ २ त्ता रोहसज्जे चिट्ठह।
शब्दार्थ - पविरल मणुस्संसि - विरले मनुष्यों के आवागमन से युक्त, णिसंत - शांत . रूप में, पडिणिसंतंसि - जब लोग विश्राम में हों।
भावार्थ - विदेह राजकन्या मल्ली ने राजा कुंभ से कहा-तात! आप चिंतातुर न रहे, यावत् दुःखनिमग्न न रहें। उन छहों राजाओं में से प्रत्येक को गुप्त रूप में दूत भेजें। एक-एक को यह कहलाए कि मैं राजकुमारी मल्ली तुम्हें दूंगा। ऐसा कह कर सायंकाल के समय, जब लोगों
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