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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - अर्हत् मल्ली : सिद्धत्व-प्राप्ति
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(१९३) मल्ली णं अरहा पणुवीसं धणूई उद्धं उच्चत्तेणं वण्णेणं पियंगुसमे समचउरंससंठाणे वजरिसहणाराय संघयणे मज्झदेसे सुहंसुहेणं विहरित्ता जेणेव सम्मेए पव्वए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता संमेयसेलसिहरे पाओवगमणुववण्णे।
भावार्थ - अरहंत मल्ली ऊँचाई में पच्चीस धनुष थे। इनका वर्ण प्रियङ्गु के सदृश नीला था। उनका दैहिक संस्थान समचतुरस्त्र तथा संहनन वज्रऋषभनाराच था। वे मध्य देश सुखपूर्वक विहार कर सम्मेद शिखर पर आए। उसके शिखर पर उन्होंने पादोपगमन अनशन स्वीकार किया।
अर्हत् मल्ली : सिद्धत्व-प्राप्ति
. . (१९४) . मल्लीणं अरहा एगं वाससयं अगारवासमझे पणपण्णं वाससहस्साइं वाससयऊणाई केवलि परियागं पाउणित्ता पणपण्णं वाससहस्साइं सव्वाउयं पालइत्ता जे से गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे चित्तसुद्धे तस्स णं चेत्तसुद्धस्स चउत्थीए भरणीए णक्खत्तेणं अद्धरत्तकालसमयंसि पंचहिं अजियासएहिं अभिंतरियाए परिसाए पंचहिं अणगार सएहिं बाहिरियाए परिसाए मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं वग्घारियपाणी खीणे वेयणिजे आउए णामे गोए सिद्धे। एवं परिणिव्वाणमहिमा भाणियव्वा जहा जंबूद्दीवपण्णत्तीए णंदीसरे अट्ठाहियाओ पडिगयाओ।
भावार्थ - अरहंत मल्ली एक सौ वर्ष पर्यंत घर में रहे। सौ वर्ष कम पचपन हजार वर्ष (चौवन हजार नौ सौ वर्ष) केवली पर्याय का पालन किया। इस तरह उन्होंने कुल पचपन हजार वर्ष का आयुष्य भोगा। तदनंतर ग्रीष्म ऋतु के प्रथम मास-चैत्रमास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि में, जब भरणी नक्षत्र के साथ चन्द्र का योग था, आधी रात के समय, आभ्यंतर परिषद् की पांच सौ साध्वियों तथा बाह्य परिषद् के पांच सौ साधुओं के साथ, बिना पानी के एक मास
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