Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 462
________________ मल्ली नामक आठवां अध्ययन - चतुर्विध संघ-संपदा ४३३ भावार्थ - जितशत्रु आदि छहों राजाओं ने धर्म सुना। वे बोले-भगवन्! यह संसार जरामरण आदि विविध दुःखों से प्रज्वलित है यावत् उन्होंने प्रव्रज्या स्वीकार की। उन्होंने क्रमशः चतुर्दश पूर्वो का ज्ञान, अनंत केवलज्ञान और सिद्धत्व प्राप्त किया। (१९०) तएणंमल्लीअरहासहसंबवणाओणिक्खइरत्ताबहियाजणवय विहारं विहरइ। भावार्थ - तदुपरांत अरहंत मल्ली ने सहस्राम्रवन-उद्यान से प्रस्थान किया। वे विविध जन-पदों में विहार करते रहे। . चतुर्विध संघ-संपदा (१६१). ... मलिस्स णं (अरहओ) भिसगपामोक्खा अट्ठावीसं गणा अट्ठावीसं गणहरा होत्था। मल्लिस्स णं अरहओ चत्तालीसं समणसाहस्सीओ उक्को। बंधुमई पामोक्खाओ पणपण्णं अजिया साहस्सीओ उक्को। सावयाणं एगा सयसाहस्सी चुलसीइं सहस्सा० सावियाणं तिण्णि सयसाहस्सीओ पण्णटिं च सहस्सा छस्सया चोइसपुव्वीणं वीससया ओहिणाणीणं बत्तीसं सया केवलणाणीणं पणतीसं सया वेउब्वियाणं अट्ठसया मणपजवणाणीणं चोइससया वाईणं वीसं सया अणुत्तरोववाइयाणं। ... भावार्थ - अरहंत मल्ली के भिषग आदि अट्ठाईस गण थे तथा अट्ठाईस गणधर थे। मल्ली अरहंत के चालीस सहन उत्कृष्ट साधु-संपदा थी। बंधुमती आदि पचपन सहस्र आर्यिकासाध्वी संपदा थी। एक लाख चौरासी सहस्र श्रावक संपदा थी। तीन लाख पैंसठ हजार श्राविका संपदा थी। ____ अरहंत मल्ली के छह सौ चतुर्दश पूर्वधर, दो हजार अवधिज्ञानी, तीन हजार दो सौ केवलज्ञानी, तीन हजार पांच सौ वैक्रिय लब्धिधारी, आठ सौ मनःपर्यायज्ञानी, एक हजार चार सौ वादी तथा दो हजार अनुत्तरोपपातिक-एक भव के पश्चात् मुक्तिगामी, के रूप में उत्कृष्ट साधु संपदा थी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org


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