Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मल्ली नामक आठवां अध्ययन
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प्रव्रज्या-समारोह
(१८४)
तणं (से) ते भवणवई ४ मल्लिस्स अरहओ णिक्खमणमहिमं करेंति २
त्ता जेणेव णंदीस (रव) रे० अट्ठाहियं करेंति जाव पडिगया ।
शब्दार्थ - अट्ठाहियं - अष्टाह्निक-आठ दिवसीय महोत्सव ।
भावार्थ तदनंतर भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों ने मल्ली अरहंत का दीक्षा - महोत्सव किया। वैसा कर वे नंदीश्वर द्वीप में आए। वहाँ उन्होंने अष्ट दिवसीय महोत्सव मनाया। वैसा कर वे यावत् अपने-अपने स्थानों को वापस चले गए ।
(१८५)
तए णं मल्ली अरहा जं चेव दिवसं पव्वइए तस्सेव दिवसल्स पुव्वा ( पच्चा ) - वरण्हकाल समयंसि असोगवरपायवस्स अहे पुढविसिलापट्टयंसि सुहासणवरगयस्स सुहेणं परिणामेणं (पसत्थेर्हि अज्झवसाणेहिं ) पसत्थाहिं लेसाहिं (विसुज्झमाणीहिं) तयावरणकम्मरयविकरणकरं अपुव्वकरणं अणुपविट्ठस्स अनंते जाव केवल (वर) णाणदंसणे समुप्पण्णे ।
भावार्थ - अरहंत मल्ली ने जिस दिन दीक्षा ली, उसी दिन के अंतिम भाग में, जब वे श्रेष्ठ अशोक वृक्ष के नीचे, पृथ्वीशिला पट्ट पर विराजित थे, शुभ परिणाम प्रशस्त अध्यवसाय तथा विशुद्ध होती हुई लेश्याओं, ज्ञानावरणीय एवं दर्शनावरणीय कर्म रज के क्षय से अपूर्वकरण में प्रविष्ट हो जाने के अनंतर ( उन्होंने ) अनंत यावत् अनुत्तर केवल ज्ञान प्राप्त किया ।
(१८६)
तेणं काणं तेणं समएणं सव्वदेवाणं आसणाई चलंति समोसढा सुर्णेति अट्ठाहिय महिमा० णंदीसरे (जाव) जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया । कुंभए वि णिग्गच्छइ ।
भावार्थ
उस काल उस समय सब देवों के आसन चलित हुए। वे वहाँ समवसृत हुए
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