Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
आए। उन्होंने धर्मोपदेश सुना। नंदीश्वर द्वीप में जाकर अष्ट दिवसीय महोत्सव किया। फिर वे जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में वापस लौट गए। राजा कुंभ भी वापस लौट गया ।
छहों राजा दीक्षित
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(१८७)
तए णं ते जियसत्तु पामोक्खा छप्पि य रायाणों जेट्ठ पुत्ते रज्जे ठावेत्ता पुरिससहस्स वाहिणीयाओ दुरूढा सव्विडीए जेणेव मल्ली अरहा जाव पज्जुवासंति ।
भावार्थ - तत्पश्चात् जितशत्रु आदि छहों राजा अपने-अपने ज्येष्ठ पुत्र को राज्य सौंप कर एक सहस्र पुरुषों द्वारा वहनीय शिविकाओं पर आरूढ हुए। समस्त ऋद्धि एवं वैभव के साथ वे अरहंत मल्ली के सान्निध्य में उपस्थित हुए, पर्युपासना करने लगे ।
(१८८)
तणं मल्ली अरहा तीसे महइमहालियाए कुंभगस्स रण्णो तेसिं च जियसत्तुपामोक्खाणं धम्मं (परि) कहेइ । परिसा जामेव दिसिं पाउब्भूया तामेव दिसिं पडिगया। कुंभए समणोवासए जाए पडिगए पभावई य ।
भावार्थ तब अरहंत मल्ली ने विशाल परिषद् को तथा राजा कुंभ को और जितशत्रु आदि छहों राजाओं को धर्मोपदेश दिया। परिषद् जिस दिशा से आई थी, उसी ओर लौट गई। राजा कुंभ श्रमणोपासक बना उसने श्रावकव्रत स्वीकार किए और वापस लौट गया। प्रभावती भी श्रमणोपासका बनी और वापस लौट गई।
(१८९)
तए णं जियसत्तुपामोक्खा छप्पि रायाणो धम्मं सोच्चा आलित्तए णं भंते! जाव पच्चइया (जाव) चोद्दसपुव्विणो अणंते केवले सिद्धा ।
शब्दार्थ - आलित्त - प्रज्वलित ।
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