Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
का अनशन कर, दोनों हाथ लंबे रख कर वेदनीय आयुष्य नाम तथा गोत्र संज्ञक चार अघाति कर्मों का क्षय हो जाने पर अरहंत मल्ली सिद्ध हुए। . जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति में वर्णित परिनिर्वाण महिमा-महोत्सव का वर्णन यहाँ योजनीय है। देवों द्वारा नंदीश्वर द्वीप में अष्टदिवसीय निर्वाण महोत्सव किया गया। तदनंतर वे अपने-अपने स्थानों पर चले गए।
(१६५) एवं खलु जंबू! समणेणं भगवया महावीरेणं अट्ठमस्स णायज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते - त्तिबेमि।
भावार्थ - आर्य सुधर्मा ने कहा - हे जंबू! श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने आठवें ज्ञाताध्ययन का इस प्रकार वर्णन किया। मैंने जैसा सुना, वैसा ही तुम्हें कहा है। गाथा:- उग्गतव संजमवओ पगिट्टफलसाहगस्सवि जियस्स।
धम्मविसएवि सुहुमावि होइ माया अणत्थाय॥ १॥ जह मल्लिस्स महाबलभवंमि तित्थयरणामबंधेऽवि। . . तवविसय थेवमाया, जाया जुवइत्तहेउत्ति॥ २॥
. ॥ अट्ठमं अज्झायणं समत्तं॥ शब्दार्थ - पगिट्ठफलसाहगस्स - उत्तमफलप्रद साधना युक्त, जियस्स - धार्मिक परंपरानुमोदित उत्तम आचार युक्त।
भावार्थ - उत्कृष्ट फलप्रद, मयादानुरूप उग्र तप तथा संयम के होते हुए भी यदि धार्मिक आचार में जरा भी माया या छल हो तो वह अनर्थकारक होती है॥ १॥
महाबल के भव में जैसे मल्ली द्वारा तीर्थंकर गोत्र का बंध किए जाने पर भी तपश्चर्या में माया का प्रयोग करने के कारण, उन्हें स्त्री के रूप में जन्म लेना पड़ा॥ २॥
॥ ज्ञाताधर्मकथांग भाग १ समाप्त।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org