Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 454
________________ मल्ली नामक आठवां अध्ययन - प्रव्रज्या-समारोह ४२५ - प्रव्रज्या-समारोह (१६६) तएणं कुंभए राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-खिप्पामेव अट्ठसहस्सं सोवणियाणं (कलसाणं) जाव भोमेजाणं (ति) अण्णं च महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं उवट्ठवेह जाव उवट्ठवेंति। शब्दार्थ - भोमेजाणं - मिट्टी के। . भावार्थ - तदनंतर राजा कुंभ ने कौटुंबिक पुरुषों को बुलाया और कहा - शीघ्र ही तुम आठ हजार सोने के कलश यावत् आठ हजार मिट्टी के कलश तथा तीर्थंकरों के अभिषेक में प्रयुक्त होने वाली अन्य महत्त्वपूर्ण सामग्री को उपस्थापित करो यावत् कौटुंबिक पुरुषों ने राजा की आज्ञानुसार वैसा किया। (१६७) तेणं कालेणं तेणं समएणं चमरे असुरिंदे जाव अच्चुय पजवसाणा आगया। भावार्थ - उस काल, उस समय, चमर असुरेन्द्र से. लेकर यावत् अच्युत देवलोक तक के सभी इन्द्र-चौसठ इन्द्र वहाँ आ गए। (१६८) ___तए णं सक्के (३) आभिओगिए देवे सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव अट्ठसहस्सं सोवणियाणं (कलसाणं) जाव अण्णं च तं विपुलं उवट्ठवेह जाव उवट्ठति। तेवि कलसा ते चेव कलसे अणुपविट्ठा। भावार्थ - तब देवेन्द्र देवराज शक्र ने आभियोगिक देवों को बुलाया और कहा - शीघ्र ही एक हजार स्वर्णकलश यावत् तीर्थंकर अभिषेक के लिए समुचित् विपुल सामग्री उपस्थित करों यावत् आभियोगिक देवों ने शक्रेन्द्र के आदेशानुसार समस्त सामग्री उपस्थापित की। देवों द्वारा लाए गए कलश राजा कुंभ के कलशों में (दैवी प्रभाव से) अनुप्रविष्ट हो गए। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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