Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 456
________________ मल्ली नामक आठवां अध्ययन - प्रव्रज्या-समारोह ४२७ भावार्थ - तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र ने आभियोगिक देवों को बुलाया और कहाअनेक स्तंभों से युक्त यावत् मनोरमा नामक शिविका यहाँ उपस्थित करो। उन देवों ने वैसा ही किया। देवों द्वारा लाई हुई वह शिविका भी दिव्य प्रभाव से राजा कुंभ की शिविका में समाविष्ट हो गई। (१७३) तए णं मल्ली अरहा सीहासणाओ अब्भुट्टेइ २ ता जेणेव मणोरमा सीया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मणोरमं सीयं अणुपयाहिणी करेमाणा मणोरमं सीयं दुरूहइ, दुरूहित्ता सीहासणवरगए पुरत्थाभिमुहे सण्णिसण्णे। शब्दार्थ - अणुपयाहिणी करेमाणा - दक्षिणी पार्श्व में करते हुए। . भावार्थ - मल्ली अरहंत सिंहासन से उठे। उठकर जहाँ मनोरमा शिविका थी, वहाँ आए। मांगलिक दृष्टि से शिविका को अपने दक्षिणी ओर रखते हुए वे उस पर आरूढ हुए। आरूढ होकर पूर्व की ओर मुंह कर सिंहासनासीन हुए। (१७४) ___ तए णं कुंभए (राया) अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेइ २ त्ता एवं वयासीतुन्भे णं देवाणुप्पिया! बहाया जाव सव्वालंकार विभूसियामल्लिस्स सीयं परिवहह जाव परिवहति। ___भावार्थ - राजा कुंभ ने अठारह जाति-उपजाति के शिविकावाहकों को बुलाया। उनसे कहा-देवानुप्रियो! तुम स्नान आदि कर यावत् सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित होकर मल्ली की शिविका का वहन करो। शिविका वाहकों ने यावत् राजा के आदेशानुसार सब संपादित कर, शिविका को उठाया। (१७५) तए णं सक्के ३ मणोरमाए (सीयाए) दक्खिणिल्लं उवरिल्लं बाहं गेण्हइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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