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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
- भावार्थ - राजधानी मिथिला में तिराहे यावत् चौराहे, चौक आदि स्थानों में बहुत से लोग परस्पर इस प्रकार कहते थे - देवानुप्रियो! कुंभ राजा के भवन में सर्वकाम गुणितमनोवांछित रसादि युक्त विपुल मात्रा में अशन-पान-खाद्य-स्वाद्य आदि बहुत से श्रमणों यावत् अन्यान्यजनों को दिये जा रहे हैं। ____ गाथा - सुर, असुर, देव दानव एवं नरेन्द्र पूजित तीर्थंकरों के दीक्षा के अवसर पर यह घोषणा की जाती है - ‘मांगो-मांगो।' मांगने वालों को बहुत प्रकार का यथेष्ट दान दिया जाता है।
(१६१) तए णं मल्ली अरहा संवच्छरेणं तिण्णि कोडिसया अट्ठासीइंच होंति कोडीओ असिइंच सयसहस्साइंइमेयारूवं अत्थसंपयाणंदलइत्ता णिक्खमामित्तिमणं पहारे।
भावार्थ - फिर मल्ली अरहंत ने एक वर्ष तक तीन सौ अठासी करोड़ अस्सी लाख स्वर्ण मुद्रा परिमित दान देकर मन में ऐसा निश्चय किया कि अब मैं दीक्षा ग्रहण करूँ।
(१६२) तेणं कालेणं तेणं समएणं लोगंतिया देवा बंभलोए कप्पे रिठे विमाण पत्थडे सएहिं २ विमाणेहिं सएहिं २ पासायवडिसएहिं पत्तेयं २ चउहिं सामाणिय साहस्सीहिं तिहिं परिसाहिं सत्तहिं अणिएहिं सत्तहिं अणियाहिवईहिं सोलसहिं आयरक्ख- देवसाहस्सीहि अण्णेहि य बहहिं लोगंतिएहिं देवेहिं सद्धिं संपरिवडा महया-हयणगीयवाइय जाव रवेणं भुंजमाणा विहरंति तंजहा -
सारस्सयमाइच्चा वण्ही वरुणा य गद्दतोया य। तुसिया अव्वाबाहा अगिच्चा चेव रिट्ठा य॥१॥ शब्दार्थ - पासायवडिसएहिं - श्रेष्ठ प्रासादों में, आयरक्ख - आत्मरक्षक।
भावार्थ - उस काल, उस समय लोकांतिक देव ब्रह्मलोक नामक पंचम देवलोक में, अरिष्ट नामक विमान के प्रस्तट में, अपने-अपने विमानों से, उत्तम प्रासादों से, प्रत्येक-प्रत्येक चार-चार सहस्र सामानिक देवों से, तीन-तीन परिषदों से, सात-सात अनीकों सेनाओं से, सातसात सेनानायकों से, सोलह-सोलह सहस्र आत्म रक्षक देवों से तथा अन्य, अनेक लोकांतिक
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