Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 439
________________ ४१० ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र भावार्थ - तब विदेह राजकुमारी मल्ली ने स्नान किया यावत् नित्य नैमित्तिक मंगल कृत्य किए। आभूषण धारण किए। फिर वह बहुत सी कुब्जा यावत् दासियों से घिरी हुई जालगृह में स्वर्ण प्रतिमा के निकट गई। उसके मस्तक के ऊपर के कमलाकार ढक्कन को हटाया। तब मरे हुए सांप के शरीर जैसी यावत् अत्यंत विकृति युक्त दुर्गन्ध फैलने लगी। ' (१३६) . तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा ते णं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहिं २ उत्तरिजेहि आसाइं पिहंति २ त्ता परम्मुहा चिटुंति। तए णं सा मल्ली विदे० ते जियसत्तुपामोक्खे एवं वयासी-किं णं तुब्भं देवाणुप्पिया! सएहिं २ उत्तरिजेहिं जाव परम्मुहा चिट्ठह? तए णं ते जियसत्तू पामोक्खा मल्लिं विदे० एवं वयंति - एवं खलु देवाणुप्पिए! अम्हे इमेणं असुभेणं गंधेणं अभिभूया समाणा सएहिं २ जाव चिट्ठामो। शब्दार्थ - परम्मुहा - पराङ्मुख। भावार्थ - तब जितशत्रु आदि राजाओं ने दुर्गन्ध से अभिभूत, आकुल होकर अपने-अपने उत्तरीय वस्त्रों से अपनी नासिका ढक ली और पराङ्मुख हो गए-दूसरी ओर मुंह फेर लिया। ___ राजकुमारी मल्ली ने उन राजाओं से कहा - देवानुप्रियो! आपने अपने उत्तरीय वस्त्र से नाक ढक कर, मुंह को क्यों फिर लिया? इस पर जितशत्रु आदि राजाओं ने राजकुमारी मल्ली से कहा-देवानुप्रिय! हमने इस विकृति युक्त दुर्गन्ध से घबराकर अपने-अपने यावत् उत्तरीय वस्त्र से नाक ढक कर, मुँह फेर लिए हैं। . (१४०) तए णं मल्ली विदे० ते जियसत्तु पामोक्खे एवं वयासी-जइ ताव देवाणुप्पिया! - इमीमे कणग जाव पडिमाए कल्लाकल्लिं ताओ मणुण्णाओ असणाओ ४ एगमेगे पिंडे पक्खिप्पमाणे २ इमेयारूवे असुभे पोग्गल परिणामे इमस्स पुण ओरालिय सरीरस्स खेलासवस्स वंतासवस्स पित्तासवस्स सुक्कासवस्स सोणियपूयासवस्स दुरूव (रुय) ऊसास णीसासस्स दुरूवमुत्तपुइय पुरीसपुण्णस्स सडण जाव धम्मस्स Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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