Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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.. मल्ली नामक आठवां अध्ययन - मल्ली द्वारा संकट का समाधान
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य उप्पत्तियाही य ४ बुद्धीहिं परिणामेमाणे २ किंचि आयं वा उवायं वा अलभमाणे ओहयमण संकप्पे जाव झियायइ।
शब्दार्थ - णिस्संचारं - आवागमन रहित, णिरुच्चारं - नगर के परकोटे के ऊपर भी गमनागमन शून्य, ओलंभित्ताणं - अवरोध पूर्वक घेर लिया, ओहयमण संकप्पे - विनष्ट मनः संकल्प युक्त - किं कर्त्तव्य विमूढ़। ...
भावार्थ - जितशत्रु आदि छहों राजा मिथिला के निकट पहुँचे। उन्होंने मिथिला का घेराव कर लोगों का आवागमन बंद कर दिया। यहाँ तक कि परकोटे पर भी आना-जाना बंद हो गया।
राजा कुंभ ने मिथिला को इस प्रकार घिरी हुई देखा तो वह नगर की भीतरी उपस्थानशालासभा भवन में सिंहासनारूढ़ हुआ और जितशत्रु आदि छहों राजाओं के छिद्र, कमियाँ, मर्म, गुण-दोष देखने का प्रयत्न किया किन्तु वैसा नहीं कर सका। उसने अनेक प्रकार के मार्ग, उपाय खोजने में औत्पातिकी आदि चारों प्रकार की बुद्धियों का प्रयोग किया परन्तु उसे बचाव का कोई भी मार्ग, उपाय सूझ नहीं पड़ा। उसका मनः संकल्प चूर-चूर हो गया - वह किंकर्तव्यविमूढ़ होकर, चिंतामग्न हो गया। ... मल्ली द्वारा संकट का समाधान
(१३३) इम च णं मल्ली विदे० ण्हाया जाव बहूहिं खुजाहिं परिवुडा जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छइ २ ता कुंभगस्स पायग्गहणं करेइ। तए णं कुंभए राया मल्लिं विदे० णो आढाइ णो परियाणाइ तुसिणीए संचिट्ठइ।
शब्दार्थ - खुजा - कुब्ज-वक्र देह संस्थान युक्त।
भावार्थ - इधर विदेहराजकुमारी मल्ली स्नानादि कर बहुत-सी कुबडी दासियों से घिरी । हुई राजा कुंभ के पास आई। उनका चरण स्पर्श किया। राजा कुंभ ने न तो राजकुमारी का कुछ . आदर ही किया और न उसकी ओर ध्यान ही दिया। वह चुपचाप बैठा रहा।
(१३४) तए णं मल्ली विदे० कुंभगं रायं एवं वयासी-तुब्भे णं ताओ! अण्णया ममं
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