Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
View full book text
________________
मल्ली नामक आठवां अध्ययन - समर भूमि में कुंभ का पराभव
मि में कुंभ का पराभव
. ४०२
एवं वयासी-खिप्पामेव (भो देवाणुप्पिया!) हय जाव सेण्णं सण्णाहेह जाव पच्चप्पिणंति।
शब्दार्थ - बलवाउयं - सेना नायक। . भावार्थ - जब राजा कुंभ को यह ज्ञात हुआ तो उसने अपने सेना नायक को बुलाया और कहा - शीघ्र ही अपनी चतुरंगिणी सेना को तैयार करो यावत् ऐसा कर मुझे सूचित करो।
(१२६) ___ तए णं कुंभए (राया) ण्हाए सण्णद्धे हत्थिखंधवरगए जाव सेयवरचामराहिं महया मिहिलं रायहाणिं मज्झंमज्झेणं णिजाइ, णिजाइत्ता विदेहजणवयं मज्झमझेणं जेणेव देसअंते तेणेव उवागच्छइ २ त्ता खंधावारणिवेसं करेइ २ त्ता जियसत्तूपामोक्खा छप्पि य रायाणो पडिवालेमाणे जुज्झसजे पडिचिट्ठइ। ____ शब्दार्थ - णिजाइ - निकलता है, पडिवालेमाणे - प्रतीक्षा करता हुआ, जुज्झ सजेयुद्ध के लिए तत्पर, पडिचिट्ठइ - प्रतिस्थित ठहरा।।
- भावार्थ - फिर राजा कुंभ ने स्नानादि नित्य कर्म किए। युद्ध के लिए तत्पर होकर वह हाथी पर सवार हुआ। छत्र चामर युक्त वह चतुरंगिणी सेना से घिरा हुआ, युद्ध के नगाड़ों की ध्वनि के साथ, मिथिला नगरी के बीचों बीच होता हुआ, अपने राज्य की सीमा पर आया। राजा कुंभ ने पड़ाव डाला, युद्ध के लिए सन्नद्ध होकर जितशत्रु आदि राजाओं की प्रतीक्षा करने लगा। समर भूमि में कुंभ का पराभव
(१३०) तए णं ते जियसत्तुपामोक्खा छप्पि य रायाणो जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छंति २ त्ता कुंभएणं रण्णा सद्धिं संपलग्गा यावि होत्था।
शब्दार्थ - संपलग्गा - संप्रलग्न-युद्ध करने में प्रवृत्त।
भावार्थ - तत्पश्चात् जितशत्रु आदि राजा कुंभ की ओर बढ़े। कुंभ के साथ उनका युद्ध छिड़ गया।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org