Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - राजा कुंभ द्वारा तिरस्कार पूर्ण प्रतिक्रिया
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राजा कुंभ द्वारा तिरस्कार पूर्ण प्रतिक्रिया
(१२४) तए णं कुंभए राया तेसिं दूयाणं अंतिए एयमढे सोच्चा आसुरुत्ते जाव तिवलियं भिउडिं (णिडाले साहह) एवं वयासी-ण देमि णं अहं तुब्भं मल्लिं विदे० तिकट्ट ते छप्पि दूए असक्कारिय असम्माणिय अवदारेणं णिच्छुभावेइ।
भावार्थ - राजा कुंभ दूतों का यह कथन-अभिप्राय सुनकर बहुत क्रुद्ध हुआ। उसके ललाट पर भृकुटी चढ़ गई और बोला-'मैं विदेह राजकुमारी नहीं दूंगा।' यह कह कर उन छहों दूतों का कोई सत्कार, सम्मान न करते हुए उन्हें पीछे के द्वार से निकाल दिया।
(१२५) तए णं जियसत्तु पामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया कुंभएणं रण्णा असक्कारिया असम्माणिया अवदारेणं णिच्छुभाविया समाणा जेणेव सगा २ जाणवया जेणेव सयाई २ णगराई जेणेव सगा २ रायाणो तेणेव उवागच्छंति २ त्ता करयल जाव एवं वयासी
भावार्थ - राजा कुंभ द्वारा असत्कार एवं असम्मान पूर्वक पिछले द्वार से निकाले हुए जितशत्रु आदि छहों राजाओं के दूत अपने-अपने नगरों में, अपने-अपने राजाओं के पास पहुंचे। करबद्ध और विनत होकर उन्होंने कहा।
(१२६) एवं खलु सामी! अम्हे जियसत्तु पामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जमग-समगं चेव जेणेव मिहिला जाव अवदारेणं णिच्छुभावेइ। तं ण देइ णं सामी! कुंभए मल्लिं विदेहरायवरकण्णं। साणं २ राईणं एयमटुं णिवेदिति।
शब्दार्थ - जमगसमगं - एक साथ, साणं - अपने। . भावार्थ - स्वामी! जितशत्रु आदि राजाओं के छहों दूत एक ही साथ मिथिला पहुँचे यावत् सारा वृत्तान्त हमारे द्वारा निवेदित किए जाने पर राजा कुंभ ने असम्मान एवं अनादर पूर्वकं हमें पीछे के दरवाजे से निकाल दिया। स्वामी! राजा कुंभ विदेह राजकुमारी मल्ली आपको नहीं देगा। दूतों ने अपने-अपने राजाओं से यह वृत्तांत निवेदित किया।
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