Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 431
________________ ४०२ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र जितशत्रु! मिथिला नगरी के राजा कुंभ की पुत्री, प्रभावती की आत्मजा मल्ली नामक उत्तम विदेह राजकुमारी रूप, यौवन यावत् लावण्य में जैसी उत्कृष्ट है, वैसी कोई देव कन्या भी नहीं है। विदेहं राजकुमारी मल्ली के कटे हुए अंगूठे के लाखवें अंश के समान भी तुम्हारा अन्तःपुर नहीं है। यों कहकर वह परिव्राजिका जिधर से आई थी, उधर चली गई। (१२१) तए णं से जियसत्तू परिव्वाइयाजणियहासे दूयं सद्दावेइ जाव पहारेत्थ गमणाए (६)। भावार्थ - परिव्राजिका का यह कथन सुनकर राजा के मन में बड़ा हर्ष उत्पन्न हुआ यावत् दूत को मिथिला जाने का आदेश दिया। दूत तदनुसार मिथिला की ओर रवाना हुआ। छहों दूतों का एक साथ आगमन (१२२) तए णं तेसिं जियसत्तू पामोक्खाणं छण्हं राईणं दूया जेणेव मिहिला तेणेव पहारेत्थ गमणाए। भावार्थ - जितशत्रु आदि छओं राजाओं के दूत मिथिला की ओर रवाना हो चुके थे। (१२३) तए णं छप्पि (य) दूयगा जेणेव मिहिला तेणेव उवागच्छंति २ ता मिहिलाए अग्गुजाणंसि पत्तेयं २ खंधावारणिवेसं करेंति २ त्ता मिहिलं रायहाणिं अणुप्पविसंति २ त्ता जेणेव कुंभए तेणेव उवागच्छंति २ त्ता पत्तेयं २ करयल जाव साणं २ राईणं वयणाई णिवेदेति। शब्दार्थ - खंधावारणिवेसं - छावनी या पड़ाव। . भावार्थ - छहों दूत मिथिला पहुंचे। वहाँ के प्रमुख उद्यान में अलग-अलग अपने पड़ाव डाल दिए। फिर राजधानी मिथिला में प्रविष्ट हुए। राजा कुंभ के पास आए और उन्होंने हाथ जोड़े, मस्तक झुकाए, अलग-अलग अपने-अपने राजा का संदेश निवेदित किया। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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