Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - कोसल नरेश प्रतिबुद्धि
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(४६) तए णं पडिबुद्धी तं सिरिदामगंडं सुइरं कालं णिरिक्खइ २ ता तंसि सिरिदामगंडंसि जायविम्हए सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी - तुमं णं देवाणुप्पिया! मम दोच्चेणं बहूणि गामागर जाव सण्णिवेसाई आहिंडसि बहूणि राईसर जाव गिहाइं अणुपविससि, तं अत्थि णं तुमे कहिंचि एरिसए सिरिदामगंडे दिट्ठपुव्वे जारिसए णं इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे?
- भावार्थ - राजा प्रतिबुद्धि देर तक उस श्रीदामकाण्ड का निरीक्षण करता रहा। उसे देखकर राजा के मन में बड़ा विस्मय हुआ। उसने अमात्य सुबुद्धि से कहा - देवानुप्रिय! मेरे दूत के रूप में तुम बहुत से गांवों, नगरों, यावत् सन्निवेशों में घूमते रहे हो। बहुत से राजाओं, वैभवशाली पुरुषों, यावत् विशिष्टजनों के घरों में प्रविष्ट होते रहे हों। क्या तुमने ऐसा श्रीदामकाण्ड कहीं देखा है, जैसा रानी पद्मावती का यह है।
(४७) - तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धिं रायं एवं वयासी - एवं खलु सामी! अहं अण्णया कयाइं तुभं दोच्चेणं मिहिलं रायहाणिं गए। तत्थ णं मए कुंभगस्स रण्णो धूयाए पउमावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए संवच्छर पडिलेहणगंसि दिव्वे सिरिदामगंडे दिट्ठपुव्वे। तस्स णं सिरिदामगंडस्स इमे पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमंपिकलं ण अग्घइ। ___ शब्दार्थ - संवच्छरपडिलेहणगंसि - जन्मोत्सव के गर्षिक प्रसंग-वर्षगांठ के समय, कलं - अंश।
भावार्थ - तब बुद्धिशील अमात्य प्रतिबुद्धि ने राजा से कहा - स्वामिन्! मैं एक बार . आपके दूत कार्य से मिथिला राजधानी गया था, वहाँ मैंने राजा कुंभ की सुता, रानी प्रभावती
की आत्मजा, विदेह देश की श्रेष्ठ राजकुमारी मल्ली के वर्षगांठ के महोत्सव के समय, जो, दिव्य श्रीदामकांड देखा था, उसकी तुलना में रानी पद्मावती का यह श्रीदामकांड लाखवें अंश में भी नहीं आता।
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