Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
बढ़िया वस्त्र वगैरह जिनके गुण की परीक्षा प्रधान है, वे भी परिच्छेद्य गिने जाते हैं।
(५४) उवागच्छित्ता सगडीसागडियं मोयंति २ ता पोयवहणं सज्जेंति २ ता गणिमस्स जाव चउविहस्स भंडगस्स भरेंति तंदुलाण य समियस्स य तेल्लस्स य घयस्स य गुलस्स य गोरसस्स य उदयस्स य उदयभायणाण य ओसहाण य भेसज्जाण य तणस्स य कट्ठस्स य आवरणाण य पहरणाण य अण्णेसिं च बहूणं पोयवहणपाउग्गाणं दव्वाणं पोयवहणं भरेंति २ त्ता सोहणंसि तिहिकरणणक्खत्तमुहुत्तंसि विउलं असणं ४ उवक्खडावेंति २ मित्तणाइ० आपुच्छंति २ त्ता जेणेव पोयट्ठाणे तेणेव उवागच्छति।
शब्दार्थ - मोयंति - मुक्त कर देते हैं-छोड़ देते हैं, पोयवहणं - पोत्तवहन-जहाज को, सज्जेंति - सज्जित-तैयार करते हैं, तंदुलाणं - चावल, समियस्स - आटा, घयस्स - घृत, गुलस्स - गुड़, गोरस्स - दही, दूध, उदयभायणाण - पानी के बर्तन, आवरणाण - वस्त्र, पहरणाण - प्रहरण-शस्त्र, पोयवहणपाउग्गाणं - जहाज में रखने योग्य उपयोगी वस्तुएँ।
भावार्थ - उन्होंने बन्दरगाह पर आकर गाडे-गाड़ियों से सामान उतारा, उन्हें मुक्त किया। फिर जहाज को तैयार किया। उसमें गणिम, यावत् चारों प्रकार के तिजारती सामान भरे। चावल, आटा, तेल, घी, गुड़, दूध, दही, पानी के बर्तन, औषधियाँ,दवाइयाँ, तृण-लकड़ी, कपड़े, शस्त्र तथा और भी बहुत सी उपयोगी द्रव्य वस्तुएँ जहाज में रखीं। फिर उत्तम तिथि, करण, नक्षत्र एवं मुहूर्त में विपुल अशन, पान, खाद्य एवं स्वाद्य पदार्थ तैयार करवाये। अपने सुहृदों, जातीयजनों, पारिवारिकों, कुटुम्बियों, संबंधियों एवं परिजनों को भोजन कराया। उनसे समुद्रयात्रा पर जाने की अनुमति ली। तत्पश्चात् जहाँ जहाज लगा था, वहाँ आये।
तए णं तेसिं अरहण्णग जाव वाणियगाणं जाव परियणो जाव ताहिं इट्ठाहिं जाव वग्गूहिं अभिणंदंता य अभिसंथुणमाणा य एवं वयासी - अज्ज! ताय! भाय! माउल! भाइणेज्ज! भगवया समुद्देणं अभिरक्खिजमाणा २ चिरं जीवह
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