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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
खलु ममं मल्लीए वि० संपेहेइ २ त्ता भूमिभागं सज्जेइ २ त्ता मल्लीए वि० पायंगुट्ठाणुसारेणं जाव णिव्वत्ते ।
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शब्दार्थ - जवणियंतरियाए - पर्दे के पीछे स्थित, पायंगुट्ठं पैर का अंगूठा । भावार्थ उस लब्धि संपन्न युवा चित्रकार ने पर्दे के पीछे स्थित मल्ली कुमारी के पैर के अंगूठे को पर्दे में बनी अधोवर्तिनी जाली में से देखा। उसके मन में ऐसा विचार उठा कि मैं राजकुमारी मल्ली के पैर के अंगूठे के आधार पर उसे यथावत् गुणोपेत रूप में चित्रित करूँ। ऐसा विचार कर उसने चित्रांकन हेतु स्थान सज्जित किया तथा विदेह राजकन्या मल्ली के पैर के अंगूठे के आधार पर यावत् चित्र बनाया ।
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(हद)
तए णं सा चित्तगरसेणी चित्तसभं जावं हावभावे चित्तेइ २ त्ता जेणेव मल्लदिण्णे कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एयमाणत्तियं पच्चप्पिणइ । तणं मल्लदिणे चित्तगरसेणिं सक्कारेइ २ विपुलं जीवियारिहं पीइदाणं दलयइ २ त्ता पडिविसज्जेइ ।
भावार्थ - चित्रकारों ने चित्रसभा में कला पूर्ण हाव-भाव आदि से युक्त चित्र बनाए । फिर वे राजकुमार मल्लदिन्न के पास उपस्थित हुए यावत् उन्होंने निवेदन किया- आपकी आज्ञानुसार चित्रकार्य संपन्न कर दिया गया है। कुमार मल्लदिन्न ने चित्रकारों का सत्कार तथा सम्मान किया तथा उनको जीविकोपयोगी प्रीतिदान दिया तथा वहाँ से विदा किया।
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(हह)
तए णं मल्लदिण्णे कुमारे अण्णया पहाए अंतेउरपरियालसंपरिवुडे अम्मधाईए सद्धिं जेणेव चित्तसभा तेणेव उवागच्छड़, उवागच्छित्ता चित्तसभं अणुप्पविसइ २ त्ता हावभाव विलासबिब्बोयकलियाई रुवाई पासमाणे २ जेणेव मल्लीए वि०। तयाणुरूवे णिव्वत्तिए तेणेव पहारेत्थ गमणाए । तए णं से मल्लदिणे कुमारे मल्लीए वि० तयाणुरूवं णिव्वत्तियं पासइ, पासित्ता इमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था एस णं मल्ली वि० त्तिकट्टु लज्जिए वीडिए वि(अडे)ड्डे सणियं २ पच्चीसक्कइ ।
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