Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 427
________________ ३६८ ज्ञाताधर्भकथांग सूत्र चोक्षा परिवाजिका का तिरस्कार (११५) तए णं तं चोक्खं मल्लीए बहुओ दास चेडीओ हीलेंति णिंदंति खिसंति गरहंति अप्पेगइया हेरुयालंति अप्पेगइया मुहमक्कडिया करेंति अप्पेगइया वग्घाडीओ करेंति अप्पेगइया तजमाणीओ (क० अ०) तालेमाणीओ (क० अ०) णिच्छुभंति। तए णं सा चोक्खा मल्लीए विदेहरायवरकण्णाए दासचेडियाहिं हीलिजमाणी जाव गरहिजमाणी आसुरुत्ता जाव मिसिमिसेमाणी मल्लीए विदेहरायवर कण्णाए पओसमावजइ भिसियं गेण्हइ २ ता कण्णंतेउराओ पडिणिक्खमइ २ त्ता मिहिलाओ णिग्गच्छइ २ त्ता परिव्वाइया संपरिवुडा जेणेव पंचालजणवए जेणेव कंपिल्लपुरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बहूणं राईसर जाव परूवेमाणी विहरइ। __ शब्दार्थ - खिसंति - उपहास करती हैं, गरहंति - सबके समक्ष, अवर्णवाद-अत्यधिक निंदा करती हैं, हेरुयालंति - चिढ़ाकर क्रुद्ध करती है, मुहमक्कडिया - मुंह मटकाती हैं, वग्घाडीओ - तरह-तरह के शब्दों से मजाक उड़ाती हैं, तज्जमाणीओ - 'दुर्वचनों द्वारा तर्जित करती हैं, तालेमाणीओ - ताड़ित करती हुई, णिच्छुभंति - निकालती हैं, पओसमावजइ - . अत्यंत द्वेष करती हुई। भावार्थ - तब चोक्षा परिव्राजिका की बहुत सी दासियाँ अवहेलना, निंदा, उपहास, गर्दा करने लगी। कुछ दासियाँ उसे चिढ़ाकर क्रुद्ध करने लगी। कुछ मुंह मटकाने लगी। कतिपय तरह-तरह के दुर्वचनों से मजाक उड़ाने लगीं। अन्त में उसे तर्जित, ताड़ित करते हुए निकाल दिया। चोक्षा परिव्राजिका विदेह राजकन्या मल्ली की दासियों द्वारा निंदा यावत् गर्दा अवहेलना किए जाने पर बहुत क्रुद्ध हो गई। यावत् क्रोध से तमतमाती हुई, वह राजकुमारी मल्ली के प्रति अत्यंत द्वेष भाव युक्त हो गई। उसने अपना आसन उठा लिया। कन्याओं के अन्तःपुर से बाहर निकल कर वह मिथिला से चल पड़ी। परिव्राजिकाओं से घिरी हुई वह पांचाल जनपद के अन्तर्गत कांपिल्यपुर में आई। वहाँ आकर राजाओं यावत् श्रेष्ठिजनों इत्यादि के मध्य अपने सिद्धान्तों की प्ररूपणा करने लगी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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