Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 428
________________ मल्ली नामक आठवां अध्ययन - चोक्षा परिव्राजिका का तिरस्कार ३६६ + + + (११६) तए णं से जियसत्तू अण्णया कयाइ अंतेउरपरियालसद्धिं संपरिवुडे एवं जाव विहरइ। तए णं सा चोक्खा परिव्वाइया संपरिवुडा जेणेव जियसत्तुस्स रण्णो भवणे जेणेव जियसत्तू तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अणुपविसइ २ त्ता जियसत्तुं जएणं विजएणं वद्धावेइ। तए णं से जियसत्तू परिव्वाइयं एजमाणं पासइ, पासित्ता सीहासणाओ अब्भुट्टेइ, अन्भुढेत्ता चोक्ख परिव्वाइयं सक्कारेइ २ त्ता आसणेणं उवणिमंतेइ। भावार्थ - एक बार का प्रसंग है, राजा जितशत्रु अपने अन्तःपुर और पारिवारिकजनों से घिरा हुआ यावत् सिंहासनासीन था। तेब चोक्षा परिव्राजिका राजा जितशत्रु के भवन में आई। उसने राजा को जय-विजय शब्दों द्वारा वर्धापित किया। राजा जितशत्रु ने चोक्षा परिव्राजिका को आते हुए देखा तो वह सिंहासन से उठा और चोक्षा परिव्राजिका का सत्कार सम्मान किया और आसन पर बिठाया। (११७) तए णं सा चोक्खा उदगपरिफासियाए जाव भिसियाए णिविसइ जियसत्तुं रायं रजे य जाव अंतेउरे य कुसलोदंतं पुच्छइ। तए णं सा चोक्खा जियसत्तुस्स रण्णो दाणधम्मं च जाव विहरइ। शब्दार्थ - कुसलोदंतं - कुशल वृत्तान्त। भावार्थ - चोक्षा परिव्राजिका यावत् डाभ बिछाए हुए आसन पर बैठी। उसने जितशत्रु के राज्य यावत् अन्तःपुर का कुशल वृत्तांत पूछा। उसने राजा जितशत्रु को दान-धर्म यावत् शौच धर्म आदि का उपदेश दिया। (११८) तए णं से जियसत्तू अप्पणो ओरोहंसि जाव विम्हिए (जायविम्हए) चोक्खं (परिव्वाइयं) एवं वयासी-तुमं णं देवाणुप्पिया! बहूणि गामागर जाव (अडह) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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