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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - चित्रकार दण्डित
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भावार्थ - राजकुमार मल्लदिन्न एक बार स्नानादि कर अंतःपुर एवं परिवार के जनों से घिरा हुआ धायमाता के साथ चित्र सभा में आया। कलापूर्ण हाव-भाव, विलास युक्त चित्रों को देखता हुआ वह विदेह राजकुमारी मल्ली के स्वरूप के सर्वथा अनुरूप चित्र जहाँ बना था, उस तरफ गया।
(१००) तए णं (तं) मल्लदिण्णं अम्मधाई सणियं २ पच्चोसक्कंतं पासित्ता एवं वयासी-किण्णं तुमं पुत्ता! लज्जिए वीडिए विड्डे सणियं २ पच्चोसक्कसि? तए णं से मल्लदिण्णे अम्मधाई एवं वयासी-जुत्तं णं अम्मो! मम जेट्टाए भगिणीए गुरुदेवयभूयाए लज्जणिज्जाए मम चित्तगरणिव्वत्तियं अणुपविसित्तए?
शब्दार्थ - पच्चोसक्कंतं - वापस लौटते हुए, वीडिए - वीडित-विशेष रूप से लज्जा युक्त, विड्डे - व्यर्दित-खेदाभिभूत। . भावार्थ - धायमाता ने राजकुमार मल्लदिन्न को उधर से वापस लौटते हुए देखा तो वह बोली-पुत्र! तुम अधिकाधिक लज्जित होते हुए धीरे-धीरे वापस क्यों लौट रहे हो?
.. कुमार मल्लदिन्न ने धायमाता से कहा - माता चित्रकारों द्वारा रचित चित्रसभा में अपनी गुरु तथा देव सदृश बड़ी बहिन के सामने जाना क्या मेरे लिए लजास्पद नहीं है?
चित्रकार दण्डित
(१०१) तए णं अम्मधाई मल्लदिण्णं कुमारं एवं वयासी-णो खलु पुत्ता! एस मल्ली, एस णं मल्लीए विदे० चित्तगरएणं तयाणुरूवे णिव्वत्तिए। तए णं से मल्लदिण्णे अम्मधाईए एयमढे सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ते ४ एवं वयासी-केस णं भो! से चित्तगरए अपत्थियपत्थिए जाव परिवजिए जे णं मम जेट्टाए भगिणीए गुरुदेवयभूयाए जाव णिव्वत्तिए त्तिकह तं चित्तगरं वज्झं आणवेइ। . शब्दार्थ - वज्झं - वध-मृत्युदण्ड।
भावार्थ - तंब धाय माता ने कुमार मल्लदिन्न से कहा - पुत्र! यह विदेह की उत्तम राजकन्या मल्ली कुमारी नहीं है किन्तु चित्रकार द्वारा उसके स्वरूपानुरूप तैयार किया गया चित्र ही है।
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