Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - अद्भुत चित्रकार
३८६
शब्दार्थ - हाव - स्त्री चेष्टा, भाव - मानसिक कल्पनाओं की अभिव्यक्ति, विलास - श्रृंगारमय भावोद्गम, बिब्बोय - इच्छित की प्राप्ति पर भी गर्व पूर्ण अनादर।
भावार्थ - तब कुमार मल्लदिन्न ने चित्रकारों को बुलाया और कहा-देवानुप्रियो! चित्रशाला में हाव, भाव विलास एवं बिब्बोक पूर्ण सुंदर मुद्राओं में चित्रांकन करो। वैसा कर यावत् मुझे सूचित करो।
तब चित्रकारों ने कहा - राजन् वैसा ही करेंगे। यों कह कर स्वीकार किया। वे अपने घरों में आए। तूलिकाएं एवं रंग लिए। चित्रशाला भवन में आए। भीतर प्रवेश किया। चित्रांकन हेतु स्थान तैयार किए। उन्हें सज्जित किया तथा उन पर विविध हाव, भाव यावत् बिब्बोक आदि मुद्रायुक्त चित्र बनाने में प्रवृत्त हुए।
(६६) तए णं एगस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगरलद्धी लद्दा पत्ता अभिसमण्णागया - जस्स णं दुपयस्स वा चउपयस्स वा अपयस्स वा एगदेसमवि पासइ तस्स णं देसाणुसारेणं तयाणुरूवं णिव्वत्तेइ।
- शब्दार्थ - चित्तगरलद्धी - चित्रकार लब्धि-विशिष्ट साधना-अभ्यास जनित असाधारण चित्रकारिता की क्षमता, दुपयस्स. - द्विपद - दो पैर वाले का-मनुष्य आदि का, चउपयस्स - चतुष्पद-चौपाये अश्व आदि प्राणी का, अपयस्स - पाद रहित, वृक्ष, भवन आदि एकावयवभूत वस्तु का, एगदेसं - एक अंश या भाग, णिव्वत्तेइ - निवर्तयति-रचना करता है।
भावार्थ - उन चित्रकारों में एक युवा चित्रकार को ऐसी विशिष्ट चित्रनिर्माण की लब्धि प्राप्त थी कि वह किसी द्विपद, चतुष्पद या वृक्ष भवन आदि के किसी एक भाग को देखकर तदनुसार उसके परिपूर्ण रूप का चित्र बना देता था।
अद्भुत चित्रकार
(६७) ... तए णं से चित्तगरदारए मल्लीए जवणियंतरियाए जालंतरेण पायं गुटुं पासइ। तए णं तस्स (णं) चित्तगरस्स इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था सेयं
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