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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - काशी नरेश शंख
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णिब्भया णिरुव्विग्गा सुहंसुहेणं परिवसिउं। तए णं संखे कासीराया ते सुवण्णगारे एवं वयासी-किं णं तुब्भे देवाणुप्पिया! कुंभएणं रण्णा णिव्विसया आणत्ता? तए णं ते सुवण्णगारा संखं, एवं वयासी-एवं खलु सामी! कुंभगस्स रण्णो धूयाए पभावईए देवीए अत्तयाए मल्लीए कुंडलजुयलस्स संधी विसंघडिए। तए णं से कुंभए सुवण्णागारसेणिं सद्दावेइ जाव णिव्विसया आणत्ता। तं एएणं कारणेणं सामी! अम्हे कुंभएणं णिव्विसया आणत्ता।
शब्दार्थ - बाहुच्छाया परिग्गहिया - भुजाओं की छत्रछाया में आश्रित।
भावार्थ - स्वामी! हम राजा कुंभ द्वारा मिथिला नगरी से निर्वासित किए गए हैं। यहाँ आपकी भुजाओं की छत्रछाया में आश्रित होकर निर्भय, निर्विघ्न रहना चाहते हैं। काशी राज शंख ने स्वर्णकारों को इस प्रकार कहा-देवानुप्रियो! राजा कुंभ द्वारा आपको निर्वासन की आज्ञा क्यों दी गई? स्वर्णकारों ने शंख को इस प्रकार उत्तर दिया - स्वामी! राजा कुंभ के महारानी प्रभावती की कोख से उत्पन्न मल्ली नामक राजकुमारी के कुंडल युगल का जोड़ टूट गया। तब राजा ने हम स्वर्णकारों को बुलाया यावत् कुण्डल-युगल के जोड़ लगाने की आज्ञा दी। बहुत प्रयत्न करने के बावजूद उन दिव्य कुण्डलों के जोड़ नहीं लगा सके, जिससे क्रुद्ध होकर राजा ने हमें निर्वासन का आदेश दिया।
(६२) तए णं संखे सुवण्णगारे एवं वयासी-केरिसिया णं देवाणुप्पिया! कुंभगस्स धूया पभावई देवीए अत्तया मल्ली विदेहरायवरकण्णा? तए णं ते सुवण्णगारा संख रायं एवं वयासी-णो खलु सामी! अण्णा कावि तारिसिया देवकण्णा वा जाव जारिसिया णं मल्ली विदेहवररायकण्णा। तए णं से संखे कुंडल (जुअल) जणियहासे दूयं सद्दावेइ जाव तहेव पहारेत्थ गमणाए। ... भावार्थ - यह सुनकर राजा शंख ने स्वर्णकारों से कहा - देवानुप्रियो! राजा कुंभ की पुत्री, प्रभावती की आत्मजा विदेहराज कन्या मल्ली कैसी है?
स्वर्णकारों ने राजा शंख से कहा - स्वामी! विदेह राजकुमारी मल्ली सौंदर्यादि गुणों में जैसी है, वैसी न कोई देव कन्या है यावत् न अन्य कोई राजकन्या है।
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