Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
राजकुमार मल्लदिन्नं धायमाता से यह सुनकर अत्यन्त क्रुद्ध हो उठा और बोला- वह कौन मृत्युकांक्षी चित्रकार है, जिसने मेरी गुरु एवं देव तुल्य बड़ी बहिन का ऐसा चित्र तैयार किया। यों कह कर उसने चित्रकार के लिए मृत्युदण्ड की आज्ञा दी।
(१०२)
तणं सा चित्तगरस्सेणी इमीसे कहाए लद्धट्ठा समाणा जेणेव मल्लदिण्णे कुमारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता करयल परिग्गहियं जाव वद्धावेत्ता एवं वयासी- एवं खलु सामी! तस्स चित्तगरस्स इमेयारूवा चित्तगरलद्धी लद्धा पत्ता अभिसमण्णा या जस्स णं दुपयस्स वा जाव णिव्वत्तेइ, तं मा णं सामी ! तुब्भे तं चित्तगरं वज्झं आणवेह, तं तुब्भे णं सामी! तस्स चित्तगरस्स अण्णं तयाणुरूवं दंडं णिव्वत्तेह |
भावार्थ - चित्रकारों ने जब यह बात सुनी तो वे कुमार मल्लदिन्न के पास आए। हाथ जोड़े, मस्तक झुकाए उन्होंने राजकुमार को वर्धापित किया, जयनाद किया यावत् उन्होंने कहा स्वामी! उस चित्रकार को ऐसी लब्धि प्राप्त है, जिससे वह किसी भी प्राणी या वस्तु का यावत् चित्रांकन कर सकता है। स्वामी! आप उसे मृत्यु दण्ड न दें। उसे कोई तदनुरूप अन्य दण्ड दे दें।
चित्रकार राजा अदीनशत्रु की शरण में
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(१०३)
तणं से मल्लदिणे तस्स चित्तगरस्स संडासगं छिंदावेइ २ त्ता णिव्विसयं आणवे । तए णं से चित्तगरए मल्लदिण्णे णं णिव्विसए आणत्ते समाणे सभंडमत्तोवगरणमायाए मिहिलाओ णयरीओ णिक्खमड़ २ ता विदेहं जणवयं मज्झमज्झेणं जेणेव कुरुजणवए जेणेव हत्थिणाउरे णयरे जेणेव अदीणसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडणिक्खेवं करेइ २ त्ता चित्तफलगं सज्जेइ २ त्ता मल्लीए विदे० पायं गुट्ठाणुसारेण रूवं णिव्वत्तेइ २ त्ता कक्खंतरसि छुब्भइ २ त्ता महत्थं जाव पाहुडं गेण्हइ २ त्ता हत्थिणाउरं णयरं मज्झमज्झेणं जेणेव अदीणसत्तू राया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं करयल जाव वद्धावेइ २ ता
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