Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - कोसल नरेश प्रतिबुद्धि
३७६
कुंडलजुयलं गेण्हंति २ ता जेणेव चंदच्छाए अंगराया तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता तं महत्थं जाव उवणेति।
शब्दार्थ - भंडववहरणं - साथ लाए विक्रय माल का सौदा, पडिभंडं - बदले में वहाँ प्राप्य अन्य माल की खरीद।
भावार्थ - अर्हन्त्रक आदि व्यापारी राजमार्ग पर स्थित आवास में आए। वहाँ ठहरे। अपने साथ.लाए हुए माल का सौदा बिक्री करने लगे। वैसा कर उन्होंने वहाँ प्राप्य माल खरीदा और गाड़े-गाड़ियों में भरा। गंभीर संज्ञक बंदरगाह पर आए। अपने जहाज को सज्जित किया, तैयार किया उस पर खरीदा हुआ माल लादा। जब दक्षिणोन्मुखी अनुकूल वायु चलने लगी तब वे जहाज द्वारा आगे बढ़ते-बढ़ते .चंपा नामक बंदरगाह पर आए। वहां अपने जहाज को रोका, लंगर डाले। गाड़े गाड़ी तैयार करवाए और गणिम, धरिम, मेय एवं परिच्छेद्य सामग्री को गाड़ेगाड़ियों में लदवाया यावत् महत्त्वपूर्ण उपहार तथा दिव्य कुंडल युगल लेकर अंग देश के राजा चन्द्रच्छाय के पास उपस्थित हुए और उन्हें उपहार अर्पित कए।
(७५) __तए णं चंदच्छाए अंगराया तं दिव्वं महत्थं च कुंडलजुयलं पडिच्छइ २ त्ता ते अरहएणगपामोक्खे एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया! बहूणि गामागर जाव आहिंडह लवण समुदं च अभिक्खणं २ पोयवहणेहिं ओगाहेह, तं अत्थियाई भे केइ कहिँचि अच्छेरए दिट्ठपुव्वे?
शब्दार्थ - अत्थियाई - अस्तिचापि-यदि ऐसा हो, अच्छेरए - आश्चर्य।
भावार्थ - अंगराज चन्द्रच्छाय ने वह दिव्य महत्त्वपूर्ण उपहार और कुंडल युगल स्वीकार किया तथा अर्हनक आदि व्यापारियों से बोला-देवानुप्रियो! आप भिन्न-भिन्न ग्राम, नगर यावत् सन्निवेश आदि में भ्रमण करते रहे हैं। आपने बार-बार जहाज द्वारा लवण समुद्र पर यात्राएं की हैं। आपने क्या कभी किसी स्थान पर कोई आश्चर्य देखा है?
(७६) . तए णं ते अरहण्णगपामोक्खा चंदच्छायं अंगरायं एवं वयासी-एवं खलु सामी! अम्हे इहेव चंपाए णयरीए अरहण्णगपामोक्खा बहवे संजत्तगाणावा
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