Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
. (८४) तए णं से रुप्पी राया वरिसधरस्स अंतिए एयमढे सोचा णिसम्म (सेसं तहेव) मजणगजणियहासे दूयं सद्दावेइ जाव जेणेव मिहिला णयरी तेणेव पहारेत्थ गमणाए (३)।
भावार्थ - राजा रुक्मी ने वर्षधर से यह सुनकर दूत को बुलाया (स्नानोत्सव एवं तजनित हास आदि का वर्णन पूर्ववत् योजनीय है) दूत से मिथिला नगरी जाने को कहा यावत् वह मिथिला की ओर रवाना हो गया।
काशी नरेश शंख .. (८५)
.. तेणं कालेणं तेणं समएणं कासी णामं जणवए होत्था। तत्थ णं वाणारसी णामं णयरी होत्था। तत्थ णं संखे णामं कासीराया होत्था।
भावार्थ - उस काल, उस समय काशी नामक जनपद था। उसमें वाराणसी नामक नगरी थी। काशी जनपद का शंख नामक राजा था।
(८६). तए णं तीसे मल्लीए वि० अण्णया कयाइं तस्स दिव्वस्स कुंडल जुयलस्स संधी विसंघडिए यावि होत्था। तए णं से कुंभए राया सुवण्णागार सेणिं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया! इमस्स दिवस्स कुंडल जुयस्स संधिं संघाडेह।
भावार्थ - एक समय का प्रसंग है, विदेहराज की श्रेष्ठ कन्या मल्ली के दिव्य कुण्डल की संधि विसंघटित हो गई-जोड़ टूट गया। राजा कुंभ ने स्वर्णकारों को बुलाया। उनसे कहादेवानुप्रियो! इस दिव्य कुंडल युगल की संधि के जोड़ लगा दो।
(८७) तए णं सा सुवण्णगारसेणी एयमढें तहत्ति पडिसुणेइ २ ता तं दिव्वं
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