Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मल्ली नामक आठवां अध्ययन कोसल नरेश प्रतिबुद्धि
भद्दं च भे पुणरवि लट्ठे कयकज्जे अणहसमग्गे णियगं घरं हव्वमागए पासामोत्तिकट्टु ताहिं सोमाहिं णिद्धाहिं दीहाहिं सप्पिवासाहिं पप्पुयाहिं दिट्ठीहिं णिरीक्खमाणा मुहुत्तमेत्तं संचिट्ठति ।
शब्दार्थ अज्ज - आर्य- पितामह, ताय तात-पिता, माउल मामा, भाइज भागिनेय-भानजा, अणहसमग्गे - निर्विघ्न, सप्पिवासाहिं - सतृष्ण, पप्पुयाहिं - अश्रुपूर्ण । भावार्थ तत्पश्चात् अर्हन्नक आदि व्यापारियों के, यावत् परिजन आदि, यावत् मधुर वाणी द्वारा उनका अभिनन्दन करते हुए अभिस्तवन - प्रशंसा करते हुए इस प्रकार बोले- पितामह, पिता, भाई, मामा, भानेज आप सभी भगवान् समुद्र द्वारा अभिरक्षित होते हुए चिरकाल तक जीएं, आपका मंगल हो । अपना अर्थ लक्ष्य पूर्ण कर, अपना कार्य सम्पन्न कर, हम आपको निर्विघ्नतया शीघ्र ही वापस घर लौटा हुआ देखें, यह हमारी शुभकामना है । इस प्रकार सौम्य, स्नेहपूर्ण दीर्घ, सतृष्ण एवं अश्रुपूर्ण दृष्टि से वे उन्हें देखते रहे।
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तओ समाणिएसु पुप्फबलिकम्मेसु दिण्णेसु सरसरत्तचंदणदद्दरपंचंगुलितलेसु अणुक्खित्तंसि धूवंसि पूइएस समुद्दवारसु संसारियासु वलयबाहासु ऊसिएसु सिएस झयग्गेसु पडुप्पवाइएसु तूरेसु जइएसु सव्वसउणेसु गहिएसु रायवरसासणेसु महया उक्किट्ठ सीहणाय जाव रवेणं पक्खुभियमहासमुद्दरवभूयं पिव मेइणिं करेमाणा एगदिसिं जाव वाणियगा णावं दुरूढा ।
शब्दार्थ - दिण्णेसु - दिये जाने पर, संसारियासु - भली-भाँति लगा लिए जाने पर, वलयबाहासु - लंबे-लंबे काठ के बल्ले, ऊसिएसु - उनके ऊँचे उठ जाने पर, सि श्वेत, झग्गे ध्वजाग्र-ध्वजाओं के अग्र भाग, पडुप्पवाइएसु बजाये जाने पर - मधुर ध्वनि होने पर, तूरेसु - वाद्यों के, जइएसु - विजय सूचक, रायवरसासणेसु आदेश पत्र । भावार्थ पोत में पुष्पों द्वारा मंगलोपचार किया गया। आर्द्र लाल चंदन द्वारा पांचों अंगुलियों सहित, हाथ के थापे लगाये गये । धूप जलाया गया । समुद्र की हवाओं की पूजा की गई। जहाज के काठ के बल्लों को यथा स्थान लगाया गया। सफेद ध्वजाएँ ऊँची फहराने लगीं ।
- राजा के
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