Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 402
________________ मल्ली नामक आठवां अध्ययन - कोसल नरेश प्रतिबुद्धि ....३७३ (६५) तए णं से पिसायरूवे जेणेव अरहण्णए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अरहण्णगं एव वयासी-हं भो! अरहण्णगा! अपत्थियपत्थिया! जाव परिवजिया! णो खलु कप्पइ तव सीलव्वयगुणवेरमणपच्चक्खाणे पोसहोववासाइं चालित्तए वा एवं खोभेत्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा। तं जइ णं तुमं सीलव्वयं जाव ण परिच्चयसि तो ते अहं एवं पोयवहणं दोहिं अंगुलियाहि गेण्हामि २ त्ता सत्तट्टतलप्पमाणमेत्ताई उडे वेहासं उव्विहामि २ त्ता अंतो जलंसि णिच्छोलेमि जेणं तुमं अदृदुहवसट्टे असमाहिपत्ते अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। ___ शब्दार्थ - खोभेत्तए - क्षुभित होना, वेहासं - आकाश, णिच्छोलेमि - डुबो देता हूँ। भावार्थ - वह पिशाच, जहाँ अर्हन्नक था, वहाँ आया और उसने उसे यों कहा - अरे अर्हनक अप्रार्थित प्रार्थी-मृत्यु को चाहने वाले, शीलव्रत, गुणव्रत से विरत होना, उन्हें छोड़ना, पौषधोपवास से विचलित-क्षुभित होना, उसे खंडित करना, परित्यक्त करना तुम्हें नहीं कल्पता, फिर भी मैं कहता हूँ यदि तुम शीलव्रत यावत् पौषधोपवास का त्याग नहीं करते हो तो मैं तुम्हारे जहाज को अपनी दो अंगुलियों से पकड़ लूँगा उसे सात-आठ तल-मंजिल प्रमाण ऊपर आकाश में उछाल डालूंगा तथा. जल में डूबो दूंगा, जिससे तुम आर्तध्यान में होते हुए, दुःख पीड़ित समाधि विरहित होते हुए, अकाल में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे। (६६) तए णं से अरहण्णए समणोवासए तं देवं मणसा चेव एवं वयासी-अहं णं देवाणुप्पिया! अरहण्णए णामं समणोवासए अहिगयजीवाजीवे, णो खलु अहं सक्का केणइ देवेण वा जाव णिग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा, तुमं णं जा सद्धा तं करेहि-त्तिकटु अभीए जाव अभिण्णमुहरागणयणवण्णे अदीणविमणमाणसे णिच्चले णिप्फंदे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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