Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 389
________________ ३६० ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (४८) तए णं पडिबुद्धि राया सुबुद्धिं अमच्चं एवं वयासी-केरिसिया णं देवाणुप्पिया! मल्ली विदेहरायवरकण्णा जस्स णं संवच्छरपडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सइमंपि कलं ण अग्घइ? तए णं सुबुद्धी पडिबुद्धिं इक्खागरायं एवं वयासी - एवं खलु सामी! मल्ली विदेहरायवरकण्णगा सुपइट्ठियकुम्मुण्णयचारुचरणा वण्णओ। . शब्दार्थ - कुम्मुण्णय - कूर्मोन्नत-कछुए के समान उन्नत या ऊँचे उठे हुए। भावार्थ - यह सुनकर राजा प्रतिबुद्धि ने अपने मंत्री सुबुद्धि से कहा - देवानुप्रिय! विदेहराज की पुत्री मल्ली कैसी है, जिसके वर्षगांठ के महोत्सव में रचित श्रीदामकांड के समक्ष रानी पद्मावती का यह श्रीदामकांड लाखवें अंश में भी बराबरी नहीं कर सकता। ___ तब अमात्य सुबुद्धि ने इक्ष्वाकु नरेश प्रतिबुद्धि से कहा - स्वामिन्! विदेहराज की कत्या मल्ली बहुत ही रूपवती है। उसके चरण कछुए की ज्यों उन्नत-उठे हुए हैं, इत्यादि रूप विषयक वर्णन जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र आदि सूत्रों से ग्राह्य है। (४६) तए णं पडिबुद्धी राया सुबुद्धिस्स अमध्वस्स अंतिए एयमढें सोच्चा णिसम्म सिरिदामगंडजणियहासे दूयं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छाहि णं तुम देवाणुप्पिया! मिहिलं रायहाणिं, तत्थ णं कुंभगस्स रण्णो धूयं पभावईए देवीए अंतियं मल्लिं विदेहरायवरकण्णयं मम भारियत्ताए वरेहि जइ वि य णं सा सयं रजसुंका। भावार्थ - राजा प्रतिबुद्धि मंत्री सुबुद्धि का यह कथन - श्रीदामकांड विषयक वर्णन सुनकर बड़ा हर्षित हुआ, उसने दूत को बुलाया। उसे कहा - देवानुप्रिय! तुम राजधानी मिथिला जाओ। वहाँ राजा कुंभ की सुता, रानी प्रभावती की आत्मजा, विदेहराज कन्या मल्ली को मेरे लिए भार्या के रूप में मांगो, चाहे उसे प्राप्त करने में मेरा सारा राज्य भी क्यों न लग जाए। . विवेचन - इस पाठ से आभास होता है कि प्राचीन काल में कन्या ग्रहण करने के लिए Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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