Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - कोसल नरेश प्रतिबुद्धि
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भावार्थ - उस काल, उस समय कोसल नामक जनपद-देश था। उसमें साकेत नामक नगर था। उसके उत्तरपूर्व दिशा भाग में एक विशाल नागगृह-नागदेवायतन था। जो दिव्य (लोक मान्यतानुसार), सत्य और मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला था, देवाधिष्ठित था।
(३७) तत्थ णं सागेए णयरे पडिबुद्धी णामं इक्खागुराया परिवसइ पउमावई देवी सुबुद्धी अमच्चे सामदंड०। ,
भावार्थ - उस नगर में इक्ष्वाकुवंशीय प्रतिबुद्धि नामक राजा निवास करता था। उसकी रानी का नाम पद्मावती था। सुबुद्धि नामक उसका अमात्य था, जो साम-दाम-दंड-भेद एवं उपप्रदान मूलक नीति का विशेषज्ञ था। यावत् राज्य के उत्तरदायित्व को कुशलता पूर्वक वहन करता था।
(३८) - तए णं पउमावई देवीए अण्णया कयाई णागजण्णए यावि होत्था। तए णं सा पउमावई णागजण्णमुवट्टियं जाणित्ता जेणेव पडिबुद्धी० करयल जाव एवं वयासी - एवं खलु सामी! मम कल्लं णागजण्णए (यावि) भविस्सइ, तं इच्छामि णं सामी! तुन्भेहिं अब्भणुण्णाया समाणी णागजण्णयं गमित्तए, तुन्भेवि णं सामी! मम णागजण्णयंसि समोसरह।
शब्दार्थ - णागंजण्णए - नागपूजोत्सव।
भावार्थ - एक समय का प्रसंग है, रानी पद्मावती के यहाँ नागपूजोत्सव का दिन आया। तब रानी (यह जानकर) राजा प्रतिबुद्धि के पास आयी। सादर, सविनय हाथ जोड़ कर, नमन कर, यावत् राजा को वर्धापित कर, यों बोली - स्वामी! कल नागमहोत्सव मनाऊँगी। अतः मैं आपकी आज्ञा लेकर तदर्थ जाना चाहती हूँ। आप भी इस उत्सव में पधारें, यह मेरी अभ्यर्थना है।
(३६) तए णं पडिबुद्धी पउमावई देवीए एयमटुं पडिसुणेइ। तए णं पउमावई पडिबुद्धिणा रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी हट्टतुट्ठा जाव कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ,
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