Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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मल्ली नामक आठवां अध्ययन - रानी प्रभावती का दोहद
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तस्स णं एक्कारसीए पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि अस्सिणीणक्खत्तेणं उच्चट्ठाणगएसु गहेसु जाव पमुइयपक्कीलिएसु जणवएसु आरोयारोयं एगूणवीसइमं तित्थयरं पयाया।
भावार्थ - प्रभावती देवी ने जल एवं स्थल में उत्पन्न देदीप्यमान पुष्पों की मालाओं से अपने दोहद को प्रशस्त, सुंदर रूप में पूर्ण किया। फिर नौ मास साढे सात रात-दिन पूर्ण होने पर, हेमंत के पहले महीने में, दूसरे पक्ष में-मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष में, एकादशी को, अर्द्धरात्रि के समय, जब अश्विनी नक्षत्र का चंद्रमा के साथ योग हो रहा था, सभी ग्रह उच्च स्थानगत थे, यावत् जनपदों में प्रमोद और उल्लास छाया था, रानी ने आरोग्य-पूर्ण स्वास्थ्य पूर्वक, बिना किसी बाधा के, उन्नीसवें तीर्थंकर को जन्म दिया।
(२६) तेणं कालेणं तेणं समएणं अहो लोगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारीओ मयहरीयाओ जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए जम्मणं सव्वं णवरं मिहिलाए कुंभस्स पभावईए देवीए अभिलावो संजोएयव्वो जाव णंदीसरवरे दीवे महिमा।
शब्दार्थ - वत्थव्वाओ - वास्तव्य-निवास करने वाली, मयहरीयाओ - महत्तरिकाएँगौरवशालिनी, संजोएयव्वो - संयोजयितव्य-जोड़ लेना चाहिए। - भावार्थ - उस काल, उस समय अधोलोक निवासिनी, गौरवशालिनी आठ दिक्कुमारिकाओं ने जन्म विषयक-सभी करने योग्य शुभ कार्य संपादित किए। इस विषय में जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र में जैसा वर्णन आया है, वैसा यहाँ जोड़ लेना चाहिए। विशेषता यह है कि मिथिला नगरी में राजा कुंभ के भवन में रानी प्रभावती ने कन्या को जन्म दिया, ऐसा वर्णन यहाँ योजनीय है। यावत् नंदीश्वर द्वीप में जाकर जन्म-महोत्सव आयोजित किया।
(३०) तया णं कुंभए राया बहूहिं भवणवईहिं ४ तित्थयर (जम्मणाभिसेयं) जायकम्मं जाव णामकरणं जम्हा णं अम्हे इमीए दारियाए माऊए मल्लसयणीजंसि डोहले विणीए तं होउ णं णामेणं मल्ली जहा महब्बले जाव परिवटि
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