Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
पच्चत्थुयंसि - पुनः - पुनः आच्छादित, सिरिदामगंडं श्री दामकांड -शोभायुक्त मालाओं का समूह, अणोज - अनवद्य - उत्तम ।
भावार्थ - तदनंतर रानी प्रभावती के तीन महीने पूर्ण हो जाने पर ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ। वे माताएं धन्य हैं जो जल और स्थल में उत्पन्न, दीप्तिमय पांच वर्णों के फूलों की मालाओं से आच्छादित शय्या पर बैठने का सोने का आनंद लेती हैं। गुलाब, मालती, चंपा, अशोक, पुन्नाग, मरुवा, दमनक, उत्तम शत पत्रिका के पुष्पों एवं कोरट के सुन्दर पत्तों से गूंथे हुए अत्यन्त सुखद स्पर्श युक्त, दर्शनीय, सुशोभित मालाओं के समूह से निकलती हुई गहरी सुगंध का आनंद लेती हुई, अपना दोहद पूर्ण करती हैं।
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(२७)
तए णं तीसे पभावईए देवीए इमं एयारूवं ङोहल पाउब्भूयं पासित्ता अहासण्णिहिया वाणमंतरा देवा खिप्पामेव जलथलय जाव दसद्धवण्ण मल्लं कुंभग्गसो य भारग्गसो य कुंभगस्स रण्णो भवणंसि साहरंति एगं च णं महं सिरि-दामगंडं जाव गंधद्धणिं मुयंतं उवणेंति ।
शब्दार्थ - अहासण्णिहिया
यथासन्निहित-सन्निकटवर्ती, कुंभग्गसो - कुंभप्रमाण,
भारग्गसो
भार प्रमाण ।
भावार्थ - प्रभावती रानी के इस दोहद के संबंध में जानकर निकटवर्ती वाणव्यंतर देव शीघ्र ही जल एवं स्थल में उत्पन्न, आभामय, पांच वर्णों के कुंभ एवं भार प्रमाण अत्यधिक में राजा कुंभ के महल में लाए। एक बड़ा शोभामय फूलों की मालाओं का समूहगुलदस्ता - - जिससे तेज मधुर सुगंध निकल रही थी लाए।
मात्रा
विवेचन माता की इच्छा की देवों द्वारा इस प्रकार पूर्ति करना गर्भस्थ तीर्थंकर के असाधारण और सर्वोत्कृष्ट पुण्य का प्रभाव है।
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(२८)
तणं सा पभावई देवी जलथलय जाव मल्लेणं दोहलं विणेइ । तए णं सा पभावई देवी पसत्थदोहला जाव विहरइ । तए णं सा पभावई देवी णवण्हं मासाणं अद्धट्ठमाण य रत्तिं दियाणं जे से हेमंताणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे मग्गसिरसुद्धे
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