Book Title: Gnata Dharmkathanga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
१. प्रतिबुद्धि इक्ष्वाकु वंश का अथवा इक्ष्वाकु देश का राजा हुआ। (इक्ष्वाकु देश को कौशल देश भी कहते हैं, जिसकी राजधानी अयोध्या थी ) ।
२. चन्द्रच्छाय अंगदेश का राजा हुआ, जिसकी राजधानी चम्पा थी ।
३. तीसरा शंख काशीदेव का राजा हुआ, जिसकी राजधानी वाणारसी नगरी थी।
४. रुक्मि कुणालदेश का राजा हुआ, जिसकी नगरी श्रावस्ती थी ।
५. अदीनशत्रु कुरुदेश का राजा हुआ, जिसकी राजधानी हस्तिनापुर थी ।
६. जितशत्रु पंचाल देश का राजा हुआ, जिसकी राजधानी कांपिल्यपुर थी । मल्ली का जन्म (२४)
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तए णं से महब्बले देवे तिहिं णाणेहिं समग्गे उच्चट्ठाण (ट्ठि) गएसु गहेसु सोमासु दिसासु वितिमिरासु विसुद्धासु जइएस सउणेसु पयाहिणाणुकूलंसि भूमिसप्पिंसि मारुयंसि पवायंसि णिप्पण्णसस्समेइणीयंसि कालंसि पमुइयपक्कीलिएसु जण सु अद्धरत्तकालसमयंसि अस्सिणीणक्खत्तेणं जोगमुवागएणं जे से हेमंताणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे फग्गुणसुद्धे तस्स णं फग्गुण सुद्धस्स चउत्थि पक्खेणं जगताओ विमाणाओ बत्तीसं सागरोवमट्ठिझ्याओ अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे २ भारहे वासे महिलाए रायहाणीए कुंभगस्स रण्णो पभावईए देवीए कुच्छिंसि आहारवक्कंतीए भववक्त्रंतीए सरीरवक्कंतीए गब्भत्ताए वक्कंते ।
शब्दार्थ उच्चट्ठाण गएसु उच्च स्थान गत, सोमासु - सौम्य उत्पात वर्जित, वितिमिरासु - तिमिर वर्जित - अंधकार रहित, विमुद्धासु - झंझावात रजःकणादि रहित, जइएसुविजयसूचक, सउणेसु - शकुन, पयाहिणाणुकूलंसि - दक्षिण से चलने वाले अनुकूल, भूमिसप्पिंसि पृथ्वी पर प्रसरणशील पवनं, पवास चलने पर, णिप्फण्ण - निष्पन्न, सस्स धान्य, मेइणी - पृथ्वी, अस्सिणीणक्खत्तेणं - अश्विनी नक्षत्र द्वारा, चउत्थि पक्खेणंचतुर्थी तिथि के पश्चात् भाग में अर्ध रात्रि में, आहारवक्कंतीए - देवगति विषयक आहार को अवक्रांत कर छोड़ कर, वक्कंते व्युत्क्रांत
उत्पन्न।
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